गीता 16:21: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - '<td> {{गीता अध्याय}} </td>' to '<td> {{गीता अध्याय}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>')
 
No edit summary
 
(3 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 9: Line 8:
'''प्रसंग-'''
'''प्रसंग-'''
----
----
आसुर-स्वभाव वाले मनुष्यों को लगातार आसुरी योनियों के और घोर नरकों के प्राप्त होने की बात सुनकर यह जिज्ञासा हो सकती है कि उनके लिये इस दुर्गति से बचकर परमगति को प्राप्त करने का क्या उपाय है ? इस पर अब दो श्लोकों में समस्त दुर्गतियों के प्रधान कारण रूप आसुरी सम्पत्ति के त्रिविध दोषों के त्याग करने की बात कहते हुए भगवान् परमगति की प्राप्ति का उपाय बतलाते हैं-
आसुर-स्वभाव वाले मनुष्यों को लगातार आसुरी योनियों के और घोर नरकों के प्राप्त होने की बात सुनकर यह जिज्ञासा हो सकती है कि उनके लिये इस दुर्गति से बचकर परमगति को प्राप्त करने का क्या उपाय है ? इस पर अब दो [[श्लोक|श्लोकों]] में समस्त दुर्गतियों के प्रधान कारण रूप आसुरी सम्पत्ति के त्रिविध दोषों के त्याग करने की बात कहते हुए भगवान् परमगति की प्राप्ति का उपाय बतलाते हैं-
----
----
<div align="center">
<div align="center">
Line 22: Line 21:
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|


काम, क्रोध तथा लोभ- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार आत्मा का नाश करने वाले अर्थात् उसको अधोगति में ले जोन वाले हैं। अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिये ।।21।।  
काम, क्रोध तथा लोभ- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार [[आत्मा]] का नाश करने वाले अर्थात् उसको अधोगति में ले जोन वाले हैं। अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिये ।।21।।  
   
   
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
Line 57: Line 56:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Latest revision as of 12:20, 6 January 2013

गीता अध्याय-16 श्लोक-21 / Gita Chapter-16 Verse-21

प्रसंग-


आसुर-स्वभाव वाले मनुष्यों को लगातार आसुरी योनियों के और घोर नरकों के प्राप्त होने की बात सुनकर यह जिज्ञासा हो सकती है कि उनके लिये इस दुर्गति से बचकर परमगति को प्राप्त करने का क्या उपाय है ? इस पर अब दो श्लोकों में समस्त दुर्गतियों के प्रधान कारण रूप आसुरी सम्पत्ति के त्रिविध दोषों के त्याग करने की बात कहते हुए भगवान् परमगति की प्राप्ति का उपाय बतलाते हैं-


त्रिविधं नरकस्येदं द्वारं नाशनमात्मन: ।

काम:क्रोधस्तथालोभस्तस्मादेतत्त्रयं त्यजेत् ।।21।।


काम, क्रोध तथा लोभ- ये तीन प्रकार के नरक के द्वार आत्मा का नाश करने वाले अर्थात् उसको अधोगति में ले जोन वाले हैं। अतएव इन तीनों को त्याग देना चाहिये ।।21।।

Desire, anger and greed— this triple gate of hell brings about the ruination of the soul. Therefore, one should, avoid all these three.(21)


काम: = काम ; क्रोध: = क्रोध ; तथा = तथा ; लोभ: = लोभ ; इदम् = यह ; त्रिविधम् = तीन प्रकार के ; नरकस्य = नरक के ; द्वारम् = द्वार ; आत्मन: = आत्माका ; नाशनम् = नाश करने वाले हैं अर्थात् अधोगतिमें ले जाने वाले हैं ; तस्मात् = इससे ; एतत् = इन ; त्रयम् = तीनों को ; त्यजेत् = त्याग देना चाहियें ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख