गीता 17:1: Difference between revisions

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'''सप्तदशोऽध्याय प्रसंग-'''
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इस सतरहवें अध्याय के आरम्भ में <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था।
इस सतरहवें अध्याय के आरम्भ में [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ने श्रद्धा युक्त पुरुषों की निष्ठा पूछी है, उसके उत्तर में भगवान् ने तीन प्रकार की श्रद्धा बतलाकर श्रद्धा के अनुसार ही पुरुष का स्वरूप बतलाया है। फिर [[पूजा]], [[यज्ञ]], तप आदि में श्रद्धा का संबंध दिखलाते हुए अन्तिम [[श्लोक]] में श्रद्धा रहित पुरुषों के कर्मों को असत् बतलाया गया है। इस प्रकार इस अध्याय में त्रिविध श्रद्धा की विभागपूर्वक व्याख्या होने से इसका नाम 'श्रद्धात्रय विभागयोग' रखा गया है।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ने श्रद्धा युक्त पुरुषों की निष्ठा पूछी है, उसके उत्तर में भगवान् ने तीन प्रकार की श्रद्धा बतलाकर श्रद्धा के अनुसार ही पुरुष का स्वरूप बतलाया है । फिर पूजा, यज्ञ, तप आदि में श्रद्धा का संबंध दिखलाते हुए अन्तिम श्लोक में श्रद्धा रहित पुरुषों के कर्मों को असत् बतलाया गया है । इस प्रकार इस अध्याय में त्रिविध श्रद्धा की विभागपूर्वक व्याख्या होने से इसका नाम 'श्रद्धात्रय विभागयोग' रखा गया है ।
 
'''प्रसंग-'''
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'''अर्जुन बोले-'''
'''अर्जुन बोले-'''
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हे <balloon link="कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।  
हे [[श्रीकृष्ण]]<ref>'गीता' कृष्ण द्वारा [[अर्जुन]] को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे [[भारत]] में किसी न किसी रूप में की जाती है।</ref> ! जो मनुष्य शास्त्रविधि को त्यागकर श्रद्धा से युक्त हुए देवादिका पूजन करते हैं, उनकी स्थिति फिर कौन सी है ? सात्त्विकी है अथवा राजसी अथवा तामसी ? ।।1।।
¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">कृष्ण</balloon> ! जो मनुष्य शास्त्रविधि को त्यागकर श्रद्धा से युक्त हुए देवादिका पूजन करते हैं, उनकी स्थिति फिर कौन सी है ? सात्त्विकी है अथवा राजसी अथवा तामसी ? ।।1।।


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कृष्ण = हे कृष्ण ; ये = जो मनुष्य ; शास्त्रविधिम् = शास्त्रविधि को ; उत्सृज्य = त्याग कर (केवल) ; श्रद्धया = श्रद्धा से ; अन्विता: = युक्त हुए ; यजन्ते = देवादिकों का पूजन करते हैं ; तेषाम् = उनकी ; निष्ठा = स्थिति ; तु = फिर ; का = कौनसी है (क्या) ; सत्त्वम् = सात्त्वि की है ; आहो = अथवा ; रज: = राजसी (किंवा) ; तम: = तामसी है;  
कृष्ण = हे कृष्ण ; ये = जो मनुष्य ; शास्त्रविधिम् = शास्त्रविधि को ; उत्सृज्य = त्याग कर (केवल) ; श्रद्धया = श्रद्धा से ; अन्विता: = युक्त हुए ; यजन्ते = देवादिकों का पूजन करते हैं ; तेषाम् = उनकी ; निष्ठा = स्थिति ; तु = फिर ; का = कौन-सी है (क्या) ; सत्त्वम् = सात्त्वि की है ; आहो = अथवा ; रज: = राजसी (किंवा) ; तम: = तामसी है;  
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Latest revision as of 12:41, 6 January 2013

गीता अध्याय-17 श्लोक-1 / Gita Chapter-17 Verse-1

सप्तदशोऽध्याय प्रसंग-


इस सतरहवें अध्याय के आरम्भ में अर्जुन[1] ने श्रद्धा युक्त पुरुषों की निष्ठा पूछी है, उसके उत्तर में भगवान् ने तीन प्रकार की श्रद्धा बतलाकर श्रद्धा के अनुसार ही पुरुष का स्वरूप बतलाया है। फिर पूजा, यज्ञ, तप आदि में श्रद्धा का संबंध दिखलाते हुए अन्तिम श्लोक में श्रद्धा रहित पुरुषों के कर्मों को असत् बतलाया गया है। इस प्रकार इस अध्याय में त्रिविध श्रद्धा की विभागपूर्वक व्याख्या होने से इसका नाम 'श्रद्धात्रय विभागयोग' रखा गया है। प्रसंग-


संसार में ऐसे लोग भी हो सकते हैं जो शास्त्र विधि को तो न जानने के कारण अथवा अन्य किसी कारण से त्याग कर बैठते हैं, परंतु यज्ञ-पूजादि शुभ कर्म श्रद्धापूर्वक करते हैं, उनकी क्या स्थिति होती है ? इस जिज्ञासा को व्यक्त करते हुए अर्जुन भगवान् से पूछते हैं-



अर्जुन उवाच-
ये शास्त्रविधिमुत्सृज्य यजन्ते श्रद्धयान्विता: ।
तेषां निष्ठा तु का कृष्ण सत्त्वमाहो रजस्तम: ।।1।।



अर्जुन बोले-


हे श्रीकृष्ण[2] ! जो मनुष्य शास्त्रविधि को त्यागकर श्रद्धा से युक्त हुए देवादिका पूजन करते हैं, उनकी स्थिति फिर कौन सी है ? सात्त्विकी है अथवा राजसी अथवा तामसी ? ।।1।।

Arjuna said-


Those who endowed with faith, worship gods and others casting aside the injunctions of the scriptures, where do they stand, Krishna,in Sattva, Rajas or Tamas?(1)


कृष्ण = हे कृष्ण ; ये = जो मनुष्य ; शास्त्रविधिम् = शास्त्रविधि को ; उत्सृज्य = त्याग कर (केवल) ; श्रद्धया = श्रद्धा से ; अन्विता: = युक्त हुए ; यजन्ते = देवादिकों का पूजन करते हैं ; तेषाम् = उनकी ; निष्ठा = स्थिति ; तु = फिर ; का = कौन-सी है (क्या) ; सत्त्वम् = सात्त्वि की है ; आहो = अथवा ; रज: = राजसी (किंवा) ; तम: = तामसी है;



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।

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