गीता 5:6: Difference between revisions

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'''योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्रा नचिरेणाधिगच्छति ।।6।।'''
'''योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्रा नचिरेणाधिगच्छति ।।6।।'''
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परंतु हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! कर्मयोग के बिना संन्यास अर्थात् मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाला सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन का त्याग, प्राप्त होना कठिन है और भगवत्स्वरूप को मनन करने वाला कर्मयोगी परब्रह्रा परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है ।।6।।
परंतु हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! कर्मयोग के बिना सन्न्यास अर्थात् मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाला सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन का त्याग, प्राप्त होना कठिन है और भगवत्स्वरूप को मनन करने वाला कर्मयोगी परब्रह्रा परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है ।।6।।


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तु = परन्तु; महाबाहो = हे अर्जुन; अयोगत: = निष्काम कर्म योग के बिना; संन्यास: = संन्यास अर्थात् मन इन्द्रियों और शरीर द्वारा होने वाले संपूर्ण कर्मों में कर्तापनका त्याग; आप्तुम् = प्राप्त होना; दु:खम् = कठिन है (और); मुनि: = स्वरूप को मनन करने वाला; योगयुक्त: = निष्काम कर्मयोगी; ब्रह्म = परब्रह्म परमात्मा को; नचिरेण = शीघ्र ही; अधिगच्छति = प्रापत हो जाता है।  
तु = परन्तु; महाबाहो = हे अर्जुन; अयोगत: = निष्काम कर्म योग के बिना; सन्न्यास: = सन्न्यास अर्थात् मन इन्द्रियों और शरीर द्वारा होने वाले संपूर्ण कर्मों में कर्तापनका त्याग; आप्तुम् = प्राप्त होना; दु:खम् = कठिन है (और); मुनि: = स्वरूप को मनन करने वाला; योगयुक्त: = निष्काम कर्मयोगी; ब्रह्म = परब्रह्म परमात्मा को; नचिरेण = शीघ्र ही; अधिगच्छति = प्रापत हो जाता है।  
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Latest revision as of 13:52, 2 May 2015

गीता अध्याय-5 श्लोक-6 / Gita Chapter-5 Verse-6

प्रसंग-


अब उपर्युक्त कर्मयोगी के लक्षणों का वर्णन करते हुए उसके कर्मों में लिप्त न होने की बात कहते हैं-


सन्न्यासस्तु महाबाहो दु:खमाप्तुमयोगत: ।
योगयुक्तो मुनिर्ब्रह्रा नचिरेणाधिगच्छति ।।6।।



परंतु हे अर्जुन[1] ! कर्मयोग के बिना सन्न्यास अर्थात् मन, इन्द्रिय और शरीर द्वारा होने वाला सम्पूर्ण कर्मों में कर्तापन का त्याग, प्राप्त होना कठिन है और भगवत्स्वरूप को मनन करने वाला कर्मयोगी परब्रह्रा परमात्मा को शीघ्र ही प्राप्त हो जाता है ।।6।।

Without karmayoga, however, sankhyayoga or renunciation of doership in relation to all activities of the mind, senses and body is difficult to accomplish; whereas the karmayogi, who keeps his mind fixed on God, reaches Brahma in no time, Arjuna.(6)


तु = परन्तु; महाबाहो = हे अर्जुन; अयोगत: = निष्काम कर्म योग के बिना; सन्न्यास: = सन्न्यास अर्थात् मन इन्द्रियों और शरीर द्वारा होने वाले संपूर्ण कर्मों में कर्तापनका त्याग; आप्तुम् = प्राप्त होना; दु:खम् = कठिन है (और); मुनि: = स्वरूप को मनन करने वाला; योगयुक्त: = निष्काम कर्मयोगी; ब्रह्म = परब्रह्म परमात्मा को; नचिरेण = शीघ्र ही; अधिगच्छति = प्रापत हो जाता है।



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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