द्रौपदी चीरहरण: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
No edit summary
 
Line 10: Line 10:
[[भीष्म]], [[विदुर]], [[द्रोणाचार्य]] आदि के रोकने पर भी द्यूतक्रीड़ा हुई, जिसमें पांडव हार गये। [[शकुनि]] द्वारा कपटपूर्वक खेलने से कौरव विजयी हुए। वनगमन से पूर्व पांडवों ने शपथ ली कि वे समस्त शत्रुओं का नाश करके ही चैन की सांस लेंगे। श्रीधौम्य<ref>पुरोहित</ref> के नेतृत्व में पांडवों ने द्रौपदी को साथ लेकर वन के लिए प्रस्थान किया। श्रीधौम्य साम मन्त्रों का गान करते हुए आगे की ओर बढ़े। वे कहकर गये थे कि युद्ध में कौरवों के मारे जाने पर उनके पुरोहित भी इसी प्रकार साम गान करेंगे। [[युधिष्ठिर]] ने अपना मुंह ढका हुआ था।<ref>वे अपने क्रुद्ध नेत्रों से देखकर किसी को भस्म नहीं करना चाहते थे।</ref> [[भीम]] अपने बाहु की ओर देख रहा था।<ref>अपने बाहुबल को स्मरण कर रहा था।</ref> [[अर्जुन]] रेत बिखेरता जा रहा था।<ref>ऐसे ही भावी संग्राम में वह वाणों की वर्षा करेगा।</ref> [[सहदेव]] ने मुंह पर मिट्टी मली हुई थी।<ref>दुर्दिन में कोई पहचान न ले।</ref> [[नकुल]] ने बदन पर मिट्टी मल रखी थी।<ref>कोई नारी उसके रूप पर आसक्त न हो।</ref> द्रौपदी ने बाल खोले हुए थे, उन्हीं से मुंह ढककर विलाप कर रही थी।<ref>जिस अन्याय से उसकी यह दशा हुई थी, चौदह वर्ष बाद उसके परिणाम स्वरूप शत्रु-नारियों की भी यही दशा होगी, वे अपने सगे-संबंधियों को तिलांजलि देंगी।</ref><ref>महाभारत, सभापर्व, अध्याय 47 से 77 तक</ref>
[[भीष्म]], [[विदुर]], [[द्रोणाचार्य]] आदि के रोकने पर भी द्यूतक्रीड़ा हुई, जिसमें पांडव हार गये। [[शकुनि]] द्वारा कपटपूर्वक खेलने से कौरव विजयी हुए। वनगमन से पूर्व पांडवों ने शपथ ली कि वे समस्त शत्रुओं का नाश करके ही चैन की सांस लेंगे। श्रीधौम्य<ref>पुरोहित</ref> के नेतृत्व में पांडवों ने द्रौपदी को साथ लेकर वन के लिए प्रस्थान किया। श्रीधौम्य साम मन्त्रों का गान करते हुए आगे की ओर बढ़े। वे कहकर गये थे कि युद्ध में कौरवों के मारे जाने पर उनके पुरोहित भी इसी प्रकार साम गान करेंगे। [[युधिष्ठिर]] ने अपना मुंह ढका हुआ था।<ref>वे अपने क्रुद्ध नेत्रों से देखकर किसी को भस्म नहीं करना चाहते थे।</ref> [[भीम]] अपने बाहु की ओर देख रहा था।<ref>अपने बाहुबल को स्मरण कर रहा था।</ref> [[अर्जुन]] रेत बिखेरता जा रहा था।<ref>ऐसे ही भावी संग्राम में वह वाणों की वर्षा करेगा।</ref> [[सहदेव]] ने मुंह पर मिट्टी मली हुई थी।<ref>दुर्दिन में कोई पहचान न ले।</ref> [[नकुल]] ने बदन पर मिट्टी मल रखी थी।<ref>कोई नारी उसके रूप पर आसक्त न हो।</ref> द्रौपदी ने बाल खोले हुए थे, उन्हीं से मुंह ढककर विलाप कर रही थी।<ref>जिस अन्याय से उसकी यह दशा हुई थी, चौदह वर्ष बाद उसके परिणाम स्वरूप शत्रु-नारियों की भी यही दशा होगी, वे अपने सगे-संबंधियों को तिलांजलि देंगी।</ref><ref>महाभारत, सभापर्व, अध्याय 47 से 77 तक</ref>


{{लेख क्रम2 |पिछला= कौरवों का कपट|पिछला शीर्षक= कौरवों का कपट|अगला शीर्षक=पाण्डव वनवास |अगला= पाण्डव वनवास}}
{{लेख क्रम2 |पिछला= कौरवों का कपट|पिछला शीर्षक= कौरवों का कपट|अगला शीर्षक=यक्ष-युधिष्ठिर संवाद |अगला= यक्ष-युधिष्ठिर संवाद}}


{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}
{{लेख प्रगति|आधार= |प्रारम्भिक=प्रारम्भिक3 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }}

Latest revision as of 08:21, 24 August 2015

thumb|350px|द्रौपदी चीरहरण दुर्योधन द्वारा विदुर को आज्ञा दी गई वह द्रौपदी को ले आये। इस पर विदुर ने कहा कि- "अपने-अपको दाँव पर हारने के बाद युधिष्ठिर द्रौपदी को दाँव पर लगाने के अधिकारी नहीं रह जाते।" किंतु धृतराष्ट्र ने प्रतिकामी नामक सेवक को द्रौपदी को वहाँ ले आने के लिए भेजा। द्रौपदी ने उससे प्रश्न किया कि- "धर्मपुत्र ने पहले कौन-सा दाँव हारा है, स्वयं अपना अथवा द्रौपदी का।" दुर्योंधन ने क्रुद्ध होकर दु:शासन से कहा कि वह द्रौपदी को सभाभवन में लेकर आये। युधिष्ठिर ने गुप्त रूप से एक विश्वस्त सेवक को द्रौपदी के पास भेजा कि यद्यपि वह रजस्वला है तथा एक वस्त्र में है, वह वैसी ही उठ कर चली आये। सभा में पूज्य वर्ग के सामने उसका उस दशा में कलपते हुए पहुँचना दुर्योधन आदि के पापों को व्यक्त करने के लिए पर्याप्त होगा।

द्रौपदी सभा में पहुँची तो दु:शासन ने उसे स्त्री वर्ग की ओर नहीं जाने दिया तथा उसके बाल खींचकर कहा- "हमने तुझे जुए में जीता है। अत: तुझे अपनी दासियों में रखेंगे।" द्रौपदी ने समस्त कुरुवंशियों के शौर्य, धर्म तथा नीति को ललकारा और श्रीकृष्ण को मन-ही-मन स्मरण कर अपनी लज्जा की रक्षा के लिए प्रार्थना की। सब मौन रहे, किंतु दुर्योधन के छोटे भाई विकर्ण ने द्रौपदी का पक्ष लेते हुए कहा कि- "हारा हुआ युधिष्ठिर उसे दाँव पर नहीं रख सकता था।" किंतु किसी ने उसकी बात नहीं सुनी। कर्ण के उकसाने से दु:शासन ने द्रौपदी को निर्वस्त्र करने की चेष्टा की। उधर विलाप करती हुई द्रौपदी ने पांडवों की ओर देखा तो भीम ने युधिष्ठिर से कहा कि- "वह उनके हाथ जला देना चाहता है, जिनसे उन्होंने जुआ खेला था।" अर्जुन ने उसे शांत किया। भीम ने शपथ ली कि वह दु:शासन की छाती का ख़ून पियेगा तथा दुर्योधन की जंघा को अपनी गदा से नष्ट कर डालेगा।[1]

द्रौपदी ने इस विकट विपत्ति में श्रीकृष्ण का स्मरण किया। श्रीकृष्ण की कृपा से अनेक वस्त्र वहाँ प्रकट हुए, जिनसे द्रौपदी आच्छादित रही, फलत: उसके वस्त्र खींचकर उतारते हुए भी दु:शासन उसे नग्न नहीं कर पाया। सभा में बार-बार कार्य के अनौचित्य अथवा औचित्य पर विवाद छिड़ जाता था। दुर्योधन ने पांडवों को मौन देखकर 'द्रौपदी को दाँव में हारे जाने की बात', उचित है अथवा अनुचित, इसका निर्णय भीम, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव पर छोड़ दिया। अर्जुन तथा भीम ने कहा कि- "जो व्यक्ति स्वयं को दांव में हार चुका है, वह किसी अन्य वस्तु को दाँव पर रख ही नहीं सकता था।"

धृतराष्ट्र ने सभा की रग पहचानकर दुर्योधन को फटकारा तथा द्रौपदी से तीन वर मांगने के लिए कहा। द्रौपदी ने पहले वर से युधिष्ठिर की दासभाव से मुक्ति मांगी ताकि भविष्य में उसका पुत्र प्रतिविंध्य दास पुत्र न कहलाए। दूसरे वर से भीम, अर्जुन, नकुल तथा सहदेव की, शस्त्रों तथा रथ सहित दासभाव से मुक्ति मांगी। तीसरा वर मांगने के लिए वह तैयार ही नहीं हुई, क्योंकि उसके अनुसार क्षत्रिय स्त्रियाँ दो वर मांगने की ही अधिकारिणी होती हैं। धृतराष्ट्र ने उनसे संपूर्ण विगत को भूलकर अपना स्नेह बनाए रखने के लिए कहा। साथ ही उन्हें खांडव वन में जाकर अपना राज्य भोगने की अनुमति दी। धृतराष्ट्र ने उनके खांडव वन जाने से पूर्व, दुर्योधन की प्रेरणा से, उन्हें एक बार फिर से जुआ खेलने की आज्ञा दी। यह तय हुआ कि एक ही दाँव रखा जायेगा। पांडव अथवा धृतराष्ट्र पुत्रों में से जो भी हार जायेंगे, वे मृगचर्म धारण कर बारह वर्ष वनवास करेंगे और एक वर्ष अज्ञातवास में रहेंगे। उस एक वर्ष में यदि उन्हें पहचान लिया गया तो फिर से बारह वर्ष का वनवास ग्रहण करेंगे।[1]

भीष्म, विदुर, द्रोणाचार्य आदि के रोकने पर भी द्यूतक्रीड़ा हुई, जिसमें पांडव हार गये। शकुनि द्वारा कपटपूर्वक खेलने से कौरव विजयी हुए। वनगमन से पूर्व पांडवों ने शपथ ली कि वे समस्त शत्रुओं का नाश करके ही चैन की सांस लेंगे। श्रीधौम्य[2] के नेतृत्व में पांडवों ने द्रौपदी को साथ लेकर वन के लिए प्रस्थान किया। श्रीधौम्य साम मन्त्रों का गान करते हुए आगे की ओर बढ़े। वे कहकर गये थे कि युद्ध में कौरवों के मारे जाने पर उनके पुरोहित भी इसी प्रकार साम गान करेंगे। युधिष्ठिर ने अपना मुंह ढका हुआ था।[3] भीम अपने बाहु की ओर देख रहा था।[4] अर्जुन रेत बिखेरता जा रहा था।[5] सहदेव ने मुंह पर मिट्टी मली हुई थी।[6] नकुल ने बदन पर मिट्टी मल रखी थी।[7] द्रौपदी ने बाल खोले हुए थे, उन्हीं से मुंह ढककर विलाप कर रही थी।[8][9]


left|30px|link=कौरवों का कपट|पीछे जाएँ द्रौपदी चीरहरण right|30px|link=यक्ष-युधिष्ठिर संवाद|आगे जाएँ


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत कथा- भाग 5 (हिन्दी) freegita। अभिगमन तिथि: 24 अगस्त, 2015।
  2. पुरोहित
  3. वे अपने क्रुद्ध नेत्रों से देखकर किसी को भस्म नहीं करना चाहते थे।
  4. अपने बाहुबल को स्मरण कर रहा था।
  5. ऐसे ही भावी संग्राम में वह वाणों की वर्षा करेगा।
  6. दुर्दिन में कोई पहचान न ले।
  7. कोई नारी उसके रूप पर आसक्त न हो।
  8. जिस अन्याय से उसकी यह दशा हुई थी, चौदह वर्ष बाद उसके परिणाम स्वरूप शत्रु-नारियों की भी यही दशा होगी, वे अपने सगे-संबंधियों को तिलांजलि देंगी।
  9. महाभारत, सभापर्व, अध्याय 47 से 77 तक

संबंधित लेख