राजवल्लभ सेन: Difference between revisions
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'''राजवल्लभ सेन''' (1698-1763 ई.) प्लासी के युद्ध के समय [[बंगाल]] के प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता था। इसका जन्म | '''राजवल्लभ सेन''' (1698-1763 ई.) [[प्लासी युद्ध|प्लासी के युद्ध]] के समय [[बंगाल]] के प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता था। इसका जन्म [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के फ़रीदपुर ज़िले के एक वैद्य [[परिवार]] में हुआ था। | ||
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राजवल्लभ सेन [[ढाका]] में सरकारी धन की लम्बी राशि का गठन किया और भागकर कलकत्ता (वर्तमान [[कोलकाता]]) में अंग्रेज़ों की शरण ली। सिराजुद्दौला द्वारा 1755 ई. में कलकत्ता पर आक्रमण और अधिकार कर लेने का एक कारण नवाब के न्याय दण्ड से भागे हुए [[कृष्णदास]] का अंग्रेज़ों की शरण लेना भी था। | ==मुंगेर का सूबेदार== | ||
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राजवल्लभ सेन (1698-1763 ई.) प्लासी के युद्ध के समय बंगाल के प्रभावशाली व्यक्तियों में गिना जाता था। इसका जन्म बंगाल के फ़रीदपुर ज़िले के एक वैद्य परिवार में हुआ था।
सिराजुद्दौला का विरोधी
अपनी योग्यता के बल पर राजवल्लभ सेन बंगाल के नवाब सिराजुद्दौला की चाची घसीटी बेगम का दीवान हो गया था। नवाब अलीवर्दी ख़ाँ ने उसको राजा की उपाधि दी, परन्तु इन उपकारों को भुला करके वह अलीवर्दी ख़ाँ के पौत्र एवं उत्तराधिकारी सिराजुद्दौला का विरोधी बन गया और मीरजाफ़र तथा कुछ असंतुष्ट पदाधिकारियों सहित नवाब के ख़िलाफ़ अंग्रेज़ों के षड्यंत्र में सम्मिलित हो गया। उसका पुत्र कृष्णदास बंगाल के नवाब की सेवा में नियुक्त था।[1]
अंग्रेज़ों की शरण
राजवल्लभ सेन ने ढाका में सरकारी धन की लम्बी राशि का गठन किया और भागकर कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) में अंग्रेज़ों की शरण ले ली। सिराजुद्दौला द्वारा 1755 ई. में कलकत्ता पर आक्रमण और अधिकार कर लेने का एक कारण नवाब के न्याय दण्ड से भागे हुए कृष्णदास का अंग्रेज़ों की शरण लेना भी था।
मुंगेर का सूबेदार
इस प्रकार पिता और पुत्र दोनों ही नवाब के कोप-भाजन बने, परन्तु षड्यंत्रकारी योजना सफल रही। प्लासी के युद्ध में सिराजुद्दौला की पराजय हुई और विजयी अंग्रेज़ों ने मीरजाफ़र को बंगाल का नवाब बनाया। राजवल्लभ की नियुक्ति नवाब मीरजाफ़र के परामर्शदाताओं में हुई। आगे चलकर उसे मुंगेर का सूबेदार नियुक्त किया गया। किन्तु मीरजाफ़र का शीघ्र ही पतन हो गया और मीर कासिम बंगाल का नवाब हुआ।
मृत्यु
मीर कासिम भी सिराजुद्दौला की भाँति अंग्रेज़ों के विरुद्ध था। उसे राजवल्लभ सेन के ऊपर अंग्रेज़ों के पक्षपाती होने का संदेह हुआ। इसके फलस्वरूप उसे गंगा में डुबोकर मरवा दिया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ भारतीय इतिहास कोश |लेखक: सच्चिदानन्द भट्टाचार्य |प्रकाशक: उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान |पृष्ठ संख्या: 401 |