महाभारत युद्ध छठा दिन: Difference between revisions
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*पाँच भाई केकयराजकुमार मकरव्यूह के वामपार्श्व में खड़े थे। नरश्रेष्ठ [[धृष्टकेतु]] और पराक्रमी [[चेकितान]]- ये [[व्यूह रचना|व्यूह]] के दाहिने भाग में स्थित होकर उसकी रक्षा करते थे। उसके दोनों पैरों की जगह महारथी [[कुन्तिभोज]] और विशाल सेना सहित [[शतानीक]] खड़े थे। सोमकों से घिरा हुआ महाधनुर्धर [[शिखण्डी]] और बलवान [[इरावान]]- ये दोनों उस मकरव्यूह के पुच्छभाग में खड़े थे। | *पाँच भाई केकयराजकुमार मकरव्यूह के वामपार्श्व में खड़े थे। नरश्रेष्ठ [[धृष्टकेतु]] और पराक्रमी [[चेकितान]]- ये [[व्यूह रचना|व्यूह]] के दाहिने भाग में स्थित होकर उसकी रक्षा करते थे। उसके दोनों पैरों की जगह महारथी [[कुन्तिभोज]] और विशाल सेना सहित [[शतानीक]] खड़े थे। सोमकों से घिरा हुआ महाधनुर्धर [[शिखण्डी]] और बलवान [[इरावान]]- ये दोनों उस मकरव्यूह के पुच्छभाग में खड़े थे। | ||
*पांडवों के मकरव्यूह को देखकर [[भीष्म]] ने उसके मुकाबले में अपनी सेना को | *पांडवों के मकरव्यूह को देखकर [[भीष्म]] ने उसके मुकाबले में अपनी सेना को महान् [[क्रौंच व्यूह]] के रूप में संगठित किया। उसकी चोंच के स्थान में महाधनुर्धर [[द्रोणाचार्य]] सुशोभित हुए। [[अश्वत्थामा]] और [[कृपाचार्य]] नेत्रों के स्थान में खड़े हुए। काम्बोज और बाल्हिक देश के उत्तम सैनिकों के साथ समस्त, धनुर्धरों में श्रेष्ठ नरप्रवर [[कृतवर्मा]] व्यूह के सिरोभाग में स्थित हुए। राजा शूरसेन तथा [[दुर्योधन]]- ये दोनों बहुत-से राजाओं के साथ क्रौंच व्यूह के ग्रीवा भाग में स्थित हुए। | ||
*[[मद्र]], सौवीर और [[केकय]] योद्धाओं के साथ विशाल सेना से घिरे हुए प्राग्ज्योतिषपुर के [[भगदत्त|राजा भगदत्त]] उस व्यूह के वक्षःस्थल में स्थित हुए। [[त्रिगर्त]] के [[सुशर्मा|राजा सुशर्मा]] कवच धारण करके अपनी सेना के साथ व्यूह के वामपक्ष का आश्रय लेकर खड़े थे। | *[[मद्र]], सौवीर और [[केकय]] योद्धाओं के साथ विशाल सेना से घिरे हुए प्राग्ज्योतिषपुर के [[भगदत्त|राजा भगदत्त]] उस व्यूह के वक्षःस्थल में स्थित हुए। [[त्रिगर्त]] के [[सुशर्मा|राजा सुशर्मा]] कवच धारण करके अपनी सेना के साथ व्यूह के वामपक्ष का आश्रय लेकर खड़े थे। | ||
*तुषार, यवन और शक सैनिक व्यूह के दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर स्थित हुए। श्रुतायु, शतायु तथा सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा- ये परस्पर एक-दूसरे की रक्षा करते हुए, व्यूह के जघन प्रदेश में स्थित हुए। | *तुषार, यवन और शक सैनिक व्यूह के दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर स्थित हुए। श्रुतायु, शतायु तथा सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा- ये परस्पर एक-दूसरे की रक्षा करते हुए, व्यूह के जघन प्रदेश में स्थित हुए। |
Latest revision as of 11:00, 1 August 2017
महाभारत के छठे दिन का युद्ध बड़ा ही भयंकर था। इस दिन पांडवों की ओर से मकरव्यूह तथा कौरवों की ओर से क्रौंच व्यूह का निर्माण किया गया।
- युद्ध की शुरुआत से पूर्व ही शंखों और दुन्दुभियों की ध्वनि बड़े जोर-जोर से हो रही थी। इन सबका सम्मिलित शब्द सब ओर गूँज उठा था। तदनन्तर राजा युधिष्ठिर ने धृष्टद्युम्न से कहा- "महाबाहो! तुम शत्रुनाशक 'मकरव्यूह' की रचना करो।
- मकरव्यूह की रचना के बाद उसके मस्तक के स्थान पर राजा द्रुपद तथा पाण्डु पुत्र अर्जुन खड़े हुए। महारथी नकुल और सहदेव नेत्रों के स्थान में स्थित हुए। महाबली भीमसेन उसके मुख की जगह खड़े हुए। अभिमन्यु, द्रौपदी के पाँच पुत्र, घटोत्कच, सात्यकि और युधिष्ठिर, ये उस मकरव्यूह के ग्रीवा भाग में स्थित हुए। सेनापति विराट विशाल सेना से घिरकर धृष्टद्युम्न के साथ उस व्यूह के पृष्ठ भाग में खड़े हुए।
- पाँच भाई केकयराजकुमार मकरव्यूह के वामपार्श्व में खड़े थे। नरश्रेष्ठ धृष्टकेतु और पराक्रमी चेकितान- ये व्यूह के दाहिने भाग में स्थित होकर उसकी रक्षा करते थे। उसके दोनों पैरों की जगह महारथी कुन्तिभोज और विशाल सेना सहित शतानीक खड़े थे। सोमकों से घिरा हुआ महाधनुर्धर शिखण्डी और बलवान इरावान- ये दोनों उस मकरव्यूह के पुच्छभाग में खड़े थे।
- पांडवों के मकरव्यूह को देखकर भीष्म ने उसके मुकाबले में अपनी सेना को महान् क्रौंच व्यूह के रूप में संगठित किया। उसकी चोंच के स्थान में महाधनुर्धर द्रोणाचार्य सुशोभित हुए। अश्वत्थामा और कृपाचार्य नेत्रों के स्थान में खड़े हुए। काम्बोज और बाल्हिक देश के उत्तम सैनिकों के साथ समस्त, धनुर्धरों में श्रेष्ठ नरप्रवर कृतवर्मा व्यूह के सिरोभाग में स्थित हुए। राजा शूरसेन तथा दुर्योधन- ये दोनों बहुत-से राजाओं के साथ क्रौंच व्यूह के ग्रीवा भाग में स्थित हुए।
- मद्र, सौवीर और केकय योद्धाओं के साथ विशाल सेना से घिरे हुए प्राग्ज्योतिषपुर के राजा भगदत्त उस व्यूह के वक्षःस्थल में स्थित हुए। त्रिगर्त के राजा सुशर्मा कवच धारण करके अपनी सेना के साथ व्यूह के वामपक्ष का आश्रय लेकर खड़े थे।
- तुषार, यवन और शक सैनिक व्यूह के दाहिने पक्ष का आश्रय लेकर स्थित हुए। श्रुतायु, शतायु तथा सोमदत्तकुमार भूरिश्रवा- ये परस्पर एक-दूसरे की रक्षा करते हुए, व्यूह के जघन प्रदेश में स्थित हुए।
- छठे दिन के इस भयंकर युद्ध के बाद द्रोणाचार्य का सारथी मारा गया। युद्ध में बार-बार अपनी हार से दुर्योधन क्रोधित होता रहा, परंतु भीष्म उसे ढांढस बंधाते रहे। अंत में भीष्म द्वारा पांचाल सेना का भयंकर संहार किया गया।
- इस दिन के युद्ध में दोनों ही पक्ष ने डट कर एक-दूसरे का उत्साहपूर्वक मुकाबला किया।
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