गीता 12:5: Difference between revisions

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उन सच्चिदानन्दघन निराकार [[ब्रह्मा]]<ref>सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।</ref> में आसक्त चित्तवाले पुरुषों के साधन में परिश्रम विशेष है, क्योंकि देहाभिमानियों के द्वारा अव्यक्त विषयक गति दु:खपूर्वक प्राप्त की जाती है ।।5।।
उन सच्चिदानन्दघन निराकार [[ब्रह्मा]]<ref>सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, [[विष्णु]] एवं [[शिव]] की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य स्रष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।</ref> में आसक्त चित्तवाले पुरुषों के साधन में परिश्रम विशेष है, क्योंकि देहाभिमानियों के द्वारा अव्यक्त विषयक गति दु:खपूर्वक प्राप्त की जाती है ।।5।।


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Latest revision as of 07:28, 7 November 2017

गीता अध्याय-12 श्लोक-5 / Gita Chapter-12 Verse-5

प्रसंग-


इस प्रकार निर्गुण उपासना और उसके फल का प्रतिपादन करने के पश्चात् अब देहाभिमानियों के लिये अव्यक्त गति की प्राप्ति को कठिन बतलाते हैं-


क्लेशोऽधिकतरस्तेषामव्यक्तासक्तचेतसाम् ।
अव्यक्ता हि गतिर्दु:खं देहवद्भिरवाप्यते ।।5।।



उन सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्मा[1] में आसक्त चित्तवाले पुरुषों के साधन में परिश्रम विशेष है, क्योंकि देहाभिमानियों के द्वारा अव्यक्त विषयक गति दु:खपूर्वक प्राप्त की जाती है ।।5।।

For those whose minds are attached to the unmanifested, impersonal feature of the Supreme, advancement is very troublesome. To make progress in that discipline is always difficult for those who are embodied. (5)


तेषाम् = उन ; अव्यक्तासक्त चेतसाम् = सच्चिदानन्दघन निराकार ब्रह्म में आसक्त हुए चिनवाले पुरुषों के (साधन में ) ; क्केश: = क्केश अर्थात् परिश्रम ; अधकितर: = विशेष है ; हि = क्योंकि ; देहवद्धि: = देहाभिमानियों से ; अव्यक्ता = अव्यक्तविषयक ; गति: = गति ; अवप्यते = प्राप्त की जाती है



अध्याय बारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-12

1 | 2 | 3,4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13, 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य स्रष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।

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