वेदव्यास जन्म कथा: Difference between revisions
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प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपने शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी पर दूसरे शिकारी पक्षी ने हमला कर दिया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर [[यमुना]] में जा गिरा। यमुना में [[ब्रह्मा]] के शाप से [[मछली]] बनी एक [[अप्सरा]] रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुए वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। | प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपने शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी पर दूसरे शिकारी पक्षी ने हमला कर दिया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर [[यमुना]] में जा गिरा। यमुना में [[ब्रह्मा]] के शाप से [[मछली]] बनी एक [[अप्सरा]] रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुए वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई। | ||
एक [[निषाद]] ने गर्भ पूर्ण होने पर उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली का पेट चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। वह निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया, जिसका नाम 'मत्स्यराज' हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम 'मत्स्यगंधा' रखा गया, क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को '[[सत्यवती]]' के नाम से भी जाना जाता था।<ref>{{cite web |url= http://freegita.in/mahabharat2/|title=महाभारत कथा- भाग 2|accessmonthday=22 अगस्त|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= freegita.in|language= | एक [[निषाद]] ने गर्भ पूर्ण होने पर उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली का पेट चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। वह निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया, जिसका नाम 'मत्स्यराज' हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम 'मत्स्यगंधा' रखा गया, क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को '[[सत्यवती]]' के नाम से भी जाना जाता था।<ref>{{cite web |url= http://freegita.in/mahabharat2/|title=महाभारत कथा- भाग 2|accessmonthday=22 अगस्त|accessyear= 2015|last= |first= |authorlink= |format= |publisher= freegita.in|language=हिन्दी }}</ref> | ||
बड़ी होने पर वह बालिका नाव खेने का कार्य करने लगी। एक बार [[पराशर|पाराशर मुनि]] को उसकी नाव पर बैठ कर [[यमुना]] पार करनी पड़ी। पाराशर मुनि सत्यवती के रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले- "देवि! हम तुम्हारे साथ सहवास के इच्छुक हैं।" सत्यवती ने कहा- "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।" तब पाराशर मुनि बोले- "तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। | बड़ी होने पर वह बालिका नाव खेने का कार्य करने लगी। एक बार [[पराशर|पाराशर मुनि]] को उसकी नाव पर बैठ कर [[यमुना]] पार करनी पड़ी। पाराशर मुनि सत्यवती के रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले- "देवि! हम तुम्हारे साथ सहवास के इच्छुक हैं।" सत्यवती ने कहा- "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।" तब पाराशर मुनि बोले- "तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुए कहा- "तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है, वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।" | ||
समय आने पर सत्यवती के गर्भ से वेद-वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला- "माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे "कृष्ण द्वैपायन" कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे [[वेदव्यास]] के नाम से विख्यात हुए। | समय आने पर सत्यवती के गर्भ से वेद-वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला- "माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे "कृष्ण द्वैपायन" कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे [[वेदव्यास]] के नाम से विख्यात हुए। | ||
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Latest revision as of 07:33, 7 November 2017
thumb|250px|महर्षि व्यास प्राचीन काल में सुधन्वा नाम के एक राजा थे। वे एक दिन आखेट के लिये वन गये। उनके जाने के बाद ही उनकी पत्नी रजस्वला हो गई। उसने इस समाचार को अपने शिकारी पक्षी के माध्यम से राजा के पास भिजवाया। समाचार पाकर महाराज सुधन्वा ने एक दोने में अपना वीर्य निकाल कर पक्षी को दे दिया। पक्षी उस दोने को राजा की पत्नी के पास पहुँचाने आकाश में उड़ चला। मार्ग में उस शिकारी पक्षी पर दूसरे शिकारी पक्षी ने हमला कर दिया। दोनों पक्षियों में युद्ध होने लगा। युद्ध के दौरान वह दोना पक्षी के पंजे से छूट कर यमुना में जा गिरा। यमुना में ब्रह्मा के शाप से मछली बनी एक अप्सरा रहती थी। मछली रूपी अप्सरा दोने में बहते हुए वीर्य को निगल गई तथा उसके प्रभाव से वह गर्भवती हो गई।
एक निषाद ने गर्भ पूर्ण होने पर उस मछली को अपने जाल में फँसा लिया। निषाद ने जब मछली का पेट चीरा तो उसके पेट से एक बालक तथा एक बालिका निकली। वह निषाद उन शिशुओं को लेकर महाराज सुधन्वा के पास गया। महाराज सुधन्वा के पुत्र न होने के कारण उन्होंने बालक को अपने पास रख लिया, जिसका नाम 'मत्स्यराज' हुआ। बालिका निषाद के पास ही रह गई और उसका नाम 'मत्स्यगंधा' रखा गया, क्योंकि उसके अंगों से मछली की गंध निकलती थी। उस कन्या को 'सत्यवती' के नाम से भी जाना जाता था।[1]
बड़ी होने पर वह बालिका नाव खेने का कार्य करने लगी। एक बार पाराशर मुनि को उसकी नाव पर बैठ कर यमुना पार करनी पड़ी। पाराशर मुनि सत्यवती के रूप-सौन्दर्य पर आसक्त हो गये और बोले- "देवि! हम तुम्हारे साथ सहवास के इच्छुक हैं।" सत्यवती ने कहा- "मुनिवर! आप ब्रह्मज्ञानी हैं और मैं निषाद कन्या। हमारा सहवास सम्भव नहीं है।" तब पाराशर मुनि बोले- "तुम चिन्ता मत करो। प्रसूति होने पर भी तुम कुमारी ही रहोगी।" इतना कह कर उन्होंने अपने योगबल से चारों ओर घने कुहरे का जाल रच दिया और सत्यवती के साथ भोग किया। तत्पश्चात् उसे आशीर्वाद देते हुए कहा- "तुम्हारे शरीर से जो मछली की गंध निकलती है, वह सुगन्ध में परिवर्तित हो जायेगी।"
समय आने पर सत्यवती के गर्भ से वेद-वेदांगों में पारंगत एक पुत्र हुआ। जन्म होते ही वह बालक बड़ा हो गया और अपनी माता से बोला- "माता! तू जब कभी भी विपत्ति में मुझे स्मरण करेगी, मैं उपस्थित हो जाउँगा।" इतना कह कर वे तपस्या करने के लिये द्वैपायन द्वीप चले गये। द्वैपायन द्वीप में तपस्या करने तथा उनके शरीर का रंग काला होने के कारण उन्हे "कृष्ण द्वैपायन" कहा जाने लगा। आगे चल कर वेदों का भाष्य करने के कारण वे वेदव्यास के नाम से विख्यात हुए।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ महाभारत कथा- भाग 2 (हिन्दी) freegita.in। अभिगमन तिथि: 22 अगस्त, 2015।
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