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यूनानी लेखकों के वर्णन के अनुसार मूषिकों की आयु 130 वर्ष होती थी। 712 ई. में [[अरब देश|अरब]] सेनापति [[मुहम्मद बिन क़ासिम]] ने इस नगर को [[दाहिर|राजा दाहिर]] से युद्ध करने के पश्चात् जीत लिया था। यहाँ [[ब्राह्मण]] राजा दाहिर की राजधानी थी। दाहिर इस युद्ध में मारा गया और सतीत्व की रक्षा के लिए नगर की कुलवधुएँ चिताओं में जलकर भस्म हो गईं। | [[यूनानी]] लेखकों के वर्णन के अनुसार मूषिकों की आयु 130 [[वर्ष]] होती थी। 712 ई. में [[अरब देश|अरब]] सेनापति [[मुहम्मद बिन क़ासिम]] ने इस नगर को [[दाहिर|राजा दाहिर]] से युद्ध करने के पश्चात् जीत लिया था। यहाँ [[ब्राह्मण]] राजा दाहिर की राजधानी थी। दाहिर इस युद्ध में मारा गया और सतीत्व की रक्षा के लिए नगर की कुलवधुएँ चिताओं में जलकर भस्म हो गईं। | ||
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एक प्राचीन दन्तकथा के अनुसार 800 ई. के लगभग यह नगर [[सिंध नदी]] की बाढ़ में नष्ट हो गया था। कहा जाता है कि सेफ़ुलमुल्क नामक व्यापारी ने एक सुन्दर युवती की एक क्रूर सरदार से रक्षा करने के लिए नदी का [[जल]] नगर की ओर प्रवाहित कर दिया था, जिससे नगर तबाह हो गया।<ref>स्मिथ- अर्ली हिस्ट्री | एक प्राचीन दन्तकथा के अनुसार 800 ई. के लगभग यह नगर [[सिंध नदी]] की [[बाढ़]] में नष्ट हो गया था। कहा जाता है कि सेफ़ुलमुल्क नामक व्यापारी ने एक सुन्दर युवती की एक क्रूर सरदार से रक्षा करने के लिए नदी का [[जल]] नगर की ओर प्रवाहित कर दिया था, जिससे नगर तबाह हो गया।<ref>स्मिथ- अर्ली हिस्ट्री ऑफ इंडिया, चतुर्थ संस्करण, पृ. 369 </ref> | ||
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*ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 43-44| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार | |||
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Latest revision as of 12:10, 3 May 2018
अलोर पाकिस्तान के सिंध में भक्खर से छ: मील पूर्व छोटा-सा क़स्बा था। यह 'हकरा नदी' के पश्चिमी तट पर बसा हुआ था। इस प्राचीन नगर के खंडहर रोरी से पाँच मील दक्षिण-पूर्व की ओर स्थित हैं। यह नगर अलक्षेंद्र के भारत पर आक्रमण करने के समय मुचुकर्ण या मूषिकों की राजधानी था[1] यूनानी लेखकों ने इन्हें 'मौसीकानोज' लिखा है।
इतिहास
यूनानी लेखकों के वर्णन के अनुसार मूषिकों की आयु 130 वर्ष होती थी। 712 ई. में अरब सेनापति मुहम्मद बिन क़ासिम ने इस नगर को राजा दाहिर से युद्ध करने के पश्चात् जीत लिया था। यहाँ ब्राह्मण राजा दाहिर की राजधानी थी। दाहिर इस युद्ध में मारा गया और सतीत्व की रक्षा के लिए नगर की कुलवधुएँ चिताओं में जलकर भस्म हो गईं।
दन्तकथा
एक प्राचीन दन्तकथा के अनुसार 800 ई. के लगभग यह नगर सिंध नदी की बाढ़ में नष्ट हो गया था। कहा जाता है कि सेफ़ुलमुल्क नामक व्यापारी ने एक सुन्दर युवती की एक क्रूर सरदार से रक्षा करने के लिए नदी का जल नगर की ओर प्रवाहित कर दिया था, जिससे नगर तबाह हो गया।[2]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ऐतिहासिक स्थानावली | पृष्ठ संख्या= 43-44| विजयेन्द्र कुमार माथुर | वैज्ञानिक तथा तकनीकी शब्दावली आयोग | मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार