सात्यकि: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - '[[category' to '[[Category')
 
No edit summary
 
(12 intermediate revisions by 7 users not shown)
Line 1: Line 1:
 
*शिनिप्रवर (शिनि के पौत्र) का नाम सात्यकि था। वह [[अर्जुन]] का परम स्नेही मित्र था। [[अभिमन्यु]] के निधन के उपरांत जब अर्जुन ने अगले दिन [[जयद्रथ]] को मारने की अथवा आत्मदाह की प्रतिज्ञा की थी, तब वह युद्ध के लिए चलने से पूर्व सात्यकि को [[युधिष्ठिर]] की रक्षा का भार सौंप गया था। सात्यकि तेजस्वी वीर था। उसने [[कौरव|कौरवों]] के अनेक उच्चकोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना, भूरि, कर्णपुत्र प्रसन थे।<ref>[[महाभारत]], द्रोणपर्व, 111-123, 126;140-144, 147।41-92,156।1-31, 162।1-33</ref>  
==सात्यकि / Satyaki==
*सात्यकि ने अपने अमित तेज़ तथा रणकौशल के बल से [[द्रोण]], [[कौरव|कौरवसेना]], कृतवर्मा, कंबोजों, यवन सेना, [[दु:शासन]] आदि योद्धाओं को पराजित कर दिया। दु:शासन ने पर्वतीय योद्धाओं को पत्थरों द्वारा युद्ध करने की आज्ञा दी, क्योंकि सात्यकि इस युद्ध में निपुण नहीं था। सात्यकि ने क्षिप्र गति से छोड़े बाणों से पत्थरों को चूर-चूर कर डाला तथा उनके गिरने से सारी सेनाएं आहत होने लगीं। सात्यकि ने सभी पाषाण युद्ध करने वाले योद्धाओं को मार डाला।  
*शिनिप्रवर (शिनि के पौत्र) का नाम सात्यकि था। वह [[अर्जुन]] का परम स्नेही मित्र था। [[अभिमन्यु]] के निधन के उपरांत जब अर्जुन ने अगले दिन [[जयद्रथ]] को मारने की अथवा आत्मदाह की प्रतिज्ञा की थी, तब वह युद्ध के लिए चलने से पूर्व सात्यकि को [[युधिष्ठिर]] की रक्षा का भार सौंप गया था। सात्यकि तेजस्वी वीर था। उसने कौरवों के अनेक उच्चकोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना, भूरि, कर्णपुत्र प्रसन थे।<balloon title="महाभारत, द्रोणपर्व, 111-123, 126;140-144, 147।41-92,156।1-31, 162।1-33" style=color:blue>*</balloon>  
*दु:शासन सहित समस्त योद्धा [[द्रोण]] के पास पहुंचे। [[द्रोणाचार्य]] ने जुए का स्मरण दिलाकर कायर दु:शासन को बहुत फटकारा। [[भूरिश्रवा]] ने सात्यकि का रथ खंडित कर दिया। सात्यकि को भूमि पर पटक दिया। भूरिश्रवा ने उसके बालों की चोटी एक हाथ में पकड़ ली तथा दूसरे से तलवार उठायी। तभी अर्जुन के प्रहार से उसका दाहिना हाथ कट गया। वह पहले तो इस बात पर रुष्ट हुआ कि अर्जुन बीच में क्यों कूद पड़ा, फिर युद्ध की स्थिति समझकर मौन हो गया। उसने युद्धक्षेत्र में ही आमरण अनशन की घोषणा कर दी। [[अर्जुन]] तथा [[कृष्ण]] उसकी वीरता के प्रशंसक थे तथा उन्होंने उसे ऊर्ध्वलोक प्रदान किया। सात्यकि ने रोष के आवेग में सबके रोकने की अवहेलना करते हुए उसे (भूरिश्रवा को) मार डाला। [[कृष्ण|श्रीकृष्ण]] को पहले से ही आभास था कि भूरिश्रवा सात्यकि को परास्त करेगा। श्रीकृष्ण ने दारुक से अपना रथ तैयार करने के लिए कह रखा था।  
*सात्यकि ने अपने अमित तेज तथा रणकौशल के बल से [[द्रोण]], [[कौरव]]सेना, [[कृतवर्मा]], कंबोजों, यवन सेना, [[दु:शासन]] आदि योद्धाओं को पराजित कर दिया। दु:शासन ने पर्वतीय योद्धाओं को पत्थरों द्वारा युद्ध करने की आज्ञा दी, क्योंकि सात्यकि इस युद्ध में निपुण नहीं था। सात्यकि ने क्षिप्र गति से छोड़े बाणों से पत्थरों को चूर-चूर कर डाला तथा उनके गिरने से सारी सेनाएं आहत होने लगीं। सात्यकि ने सभी पाषाण युद्ध करने वाले योद्धाओं को मार डाला।  
*दु:शासन सहित समस्त योद्धा द्रोण के पास पहुंचे। द्रोणाचार्य ने जुए का स्मरण दिलाकर कायर दु:शासन को बहुत फटकारा। [[भूरिश्रवा]] ने सात्यकि का रथ खंडित कर दिया। सात्यकि को भूमि पर पटक दिया। भूरिश्रवा ने उसके बालों की चोटी एक हाथ में पकड़ ली तथा दूसरे से तलवार उठायी। तभी अर्जुन के प्रहार से उसका दाहिना हाथ कट गया। वह पहले तो इस बात पर रुष्ट हुआ कि अर्जुन बीच में क्यों कूद पड़ा, फिर युद्ध की स्थिति समझकर मौन हो गया। उसने युद्धक्षेत्र में ही आमरण अनशन की घोषणा कर दी। [[अर्जुन]] तथा [[कृष्ण]] उसकी वीरता के प्रशंसक थे तथा उन्होंने उसे ऊर्ध्वलोक प्रदान किया। सात्यकि ने रोष के आवेग में सबके रोकने की अवहेलना करते हुए उसे (भूरिश्रवा को) मार डाला। श्रीकृष्ण को पहले से ही आभास था कि भूरिश्रवा सात्यकि को परास्त करेगा। श्रीकृष्ण ने दारुक से अपना रथ तैयार करने के लिए कह रखा था।  
*श्रीकृष्ण ने ऋषस्वर से अपना शंख बजाया- दारुक संकेत समझ, तुरंत रथ लेकर वहां पहुंच गया तथा सात्यकि उस रथ पर चढ़कर [[कर्ण]] से युद्ध करने लगा। सात्यकि का भूरिश्रवा के हाथों जो अपमान हुआ था, उसका भी एक कारण था। सात्यकि ने अनेक बार कर्ण को पराजित किया, रथहीन भी किया, किंतु कर्ण को मारने की जो प्रतिज्ञा अर्जुन ने कर रखी थी, उसे स्मरण कर, उसने कर्ण का वध नहीं किया।  
*श्रीकृष्ण ने ऋषस्वर से अपना शंख बजाया- दारुक संकेत समझ, तुरंत रथ लेकर वहां पहुंच गया तथा सात्यकि उस रथ पर चढ़कर [[कर्ण]] से युद्ध करने लगा। सात्यकि का भूरिश्रवा के हाथों जो अपमान हुआ था, उसका भी एक कारण था। सात्यकि ने अनेक बार कर्ण को पराजित किया, रथहीन भी किया, किंतु कर्ण को मारने की जो प्रतिज्ञा अर्जुन ने कर रखी थी, उसे स्मरण कर, उसने कर्ण का वध नहीं किया।  
*भूरिश्रवा का पिता सोमदत्त भूरिश्रवा के वध के विषय में जानकर बहुत रुष्ट हुआ। उसके अनुसार हाथ कटे व्यक्ति को इस प्रकार से मारना अधर्म था उसने सात्यकि को युद्ध के लिए ललकारा  किंतु श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के सहायक होने के कारण सात्यकि ने सहज ही उसे पराजित कर दिया तथा कालांतर में मार डाला।<balloon title="महाभारत, द्रोणपर्व, 166।1-13,कर्णपर्व, 82।6" style=color:blue>*</balloon>  
*[[भूरिश्रवा]] का [[पिता]] सोमदत्त भूरिश्रवा के वध के विषय में जानकर बहुत रुष्ट हुआ। उसके अनुसार हाथ कटे व्यक्ति को इस प्रकार से मारना अधर्म था उसने सात्यकि को युद्ध के लिए ललकारा  किंतु श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के सहायक होने के कारण सात्यकि ने सहज ही उसे पराजित कर दिया तथा कालांतर में मार डाला।<ref>महाभारत, द्रोणपर्व, 166।1-13,कर्णपर्व, 82।6</ref>  
 
 
 


==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{महाभारत}}{{महाभारत युद्ध}}
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:पौराणिक कोश]]
[[Category:महाभारत]]
[[Category:महाभारत]]
__INDEX__
__INDEX__

Latest revision as of 12:35, 14 January 2016

  • शिनिप्रवर (शिनि के पौत्र) का नाम सात्यकि था। वह अर्जुन का परम स्नेही मित्र था। अभिमन्यु के निधन के उपरांत जब अर्जुन ने अगले दिन जयद्रथ को मारने की अथवा आत्मदाह की प्रतिज्ञा की थी, तब वह युद्ध के लिए चलने से पूर्व सात्यकि को युधिष्ठिर की रक्षा का भार सौंप गया था। सात्यकि तेजस्वी वीर था। उसने कौरवों के अनेक उच्चकोटि के योद्धाओं को मार डाला जिनमें से प्रमुख जलसंधि, त्रिगर्तों की गजसेना, सुदर्शन, पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना, भूरि, कर्णपुत्र प्रसन थे।[1]
  • सात्यकि ने अपने अमित तेज़ तथा रणकौशल के बल से द्रोण, कौरवसेना, कृतवर्मा, कंबोजों, यवन सेना, दु:शासन आदि योद्धाओं को पराजित कर दिया। दु:शासन ने पर्वतीय योद्धाओं को पत्थरों द्वारा युद्ध करने की आज्ञा दी, क्योंकि सात्यकि इस युद्ध में निपुण नहीं था। सात्यकि ने क्षिप्र गति से छोड़े बाणों से पत्थरों को चूर-चूर कर डाला तथा उनके गिरने से सारी सेनाएं आहत होने लगीं। सात्यकि ने सभी पाषाण युद्ध करने वाले योद्धाओं को मार डाला।
  • दु:शासन सहित समस्त योद्धा द्रोण के पास पहुंचे। द्रोणाचार्य ने जुए का स्मरण दिलाकर कायर दु:शासन को बहुत फटकारा। भूरिश्रवा ने सात्यकि का रथ खंडित कर दिया। सात्यकि को भूमि पर पटक दिया। भूरिश्रवा ने उसके बालों की चोटी एक हाथ में पकड़ ली तथा दूसरे से तलवार उठायी। तभी अर्जुन के प्रहार से उसका दाहिना हाथ कट गया। वह पहले तो इस बात पर रुष्ट हुआ कि अर्जुन बीच में क्यों कूद पड़ा, फिर युद्ध की स्थिति समझकर मौन हो गया। उसने युद्धक्षेत्र में ही आमरण अनशन की घोषणा कर दी। अर्जुन तथा कृष्ण उसकी वीरता के प्रशंसक थे तथा उन्होंने उसे ऊर्ध्वलोक प्रदान किया। सात्यकि ने रोष के आवेग में सबके रोकने की अवहेलना करते हुए उसे (भूरिश्रवा को) मार डाला। श्रीकृष्ण को पहले से ही आभास था कि भूरिश्रवा सात्यकि को परास्त करेगा। श्रीकृष्ण ने दारुक से अपना रथ तैयार करने के लिए कह रखा था।
  • श्रीकृष्ण ने ऋषस्वर से अपना शंख बजाया- दारुक संकेत समझ, तुरंत रथ लेकर वहां पहुंच गया तथा सात्यकि उस रथ पर चढ़कर कर्ण से युद्ध करने लगा। सात्यकि का भूरिश्रवा के हाथों जो अपमान हुआ था, उसका भी एक कारण था। सात्यकि ने अनेक बार कर्ण को पराजित किया, रथहीन भी किया, किंतु कर्ण को मारने की जो प्रतिज्ञा अर्जुन ने कर रखी थी, उसे स्मरण कर, उसने कर्ण का वध नहीं किया।
  • भूरिश्रवा का पिता सोमदत्त भूरिश्रवा के वध के विषय में जानकर बहुत रुष्ट हुआ। उसके अनुसार हाथ कटे व्यक्ति को इस प्रकार से मारना अधर्म था उसने सात्यकि को युद्ध के लिए ललकारा किंतु श्रीकृष्ण तथा अर्जुन के सहायक होने के कारण सात्यकि ने सहज ही उसे पराजित कर दिया तथा कालांतर में मार डाला।[2]

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत, द्रोणपर्व, 111-123, 126;140-144, 147।41-92,156।1-31, 162।1-33
  2. महाभारत, द्रोणपर्व, 166।1-13,कर्णपर्व, 82।6

संबंधित लेख