गीता 10:42: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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इस प्रकार मुख्य-मुख्य वस्तुओं में अपनी योग शक्ति रूपी | इस प्रकार मुख्य-मुख्य वस्तुओं में अपनी योग शक्ति रूपी तेज़ के अंश की अभिव्यक्ति का वर्णन करके अब भगवान् यह बतला रहे हैं कि समस्त जगत् मेरी योग शक्ति के एक अंश से ही धारण किया हुआ हैं- | ||
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अथवा हे < | अथवा हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! इस बहुत जानने से तेरा क्या प्रयोजन हैं। मैं इस सम्पूर्ण जगत् को अपनी योग शक्ति के एक अंशमात्र से धारण करके स्थित हूँ ।।42।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 14:02, 5 January 2013
गीता अध्याय-10 श्लोक-42 / Gita Chapter-10 Verse-42
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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