गीता 11:36: Difference between revisions

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Latest revision as of 07:28, 6 January 2013

गीता अध्याय-11 श्लोक-36 / Gita Chapter-11 Verse-36

प्रसंग-


अब छत्तीसवें से छियालीसवें श्लोक तक अर्जुन[1] द्वारा किये हुए भगवान् के स्तवन, और क्षमा याचनासहित प्रार्थना का वर्णन है, उसमें प्रथम 'स्थाने' पद का प्रयोग करके जगत् के हर्षित होने आदि का औचित्य बतलाते हैं-


अर्जुन उवाच-
स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या
जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च ।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति
सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघा: ।।36।।



अर्जुन बोले-


हे अन्तर्यामिन्[2] ! यह योग्य ही है कि आपके नाम, गुण और प्रभाव के कीर्तन से जगत् अति हर्षित हो रहा है और अनुराग को भी प्राप्त हो रहा है तथा भयभीत राक्षस लोग दिशाओं में भाग रहे हैं और सब सिद्ध गणों के समुदाय नमस्कार कर रहे हैं ।।36।।

Arjuna said-


Lord, well it is the universe exults and is filled with love by chanting your names, virtues and glory ; terrified raksasas are fleeing in all direactions, and the hosts of siddhas are bowing to you. (36)


हृषीकेश = हे अन्तर्यामिन्; स्थाने = यह योग्यही है(कि); (यत् ) = जो; प्रकीर्त्या = नाम और प्रभाव के कीर्तन से; प्रहृष्यति = अति हर्षित होता है; च = और; अनुरज्यते = अनुरागकोभी प्राप्त होता है(तथा); भीतानि = भयभीत हुए; दिश: = दिशाओं में; द्रवन्ति = भागते हैं; सर्वें = सब; सिद्धसंघा: = सिद्धगणोंके समुदाय; नमस्यन्ति= नमस्कार करते हैं



अध्याय ग्यारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-11

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10, 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26, 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41, 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम,अन्तर्यामिन्, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।

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