गीता 13:31: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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अब भगवान् द्वारा तीसरे श्लोक में जो 'यत्प्रभावश्च' पद से क्षेत्रज्ञ का प्रभाव सुनने का संकेत किया गया था, उसके अनुसार तीन श्लोकों द्वारा आत्मा के प्रभाव का वर्णन करते हैं- | अब भगवान् द्वारा तीसरे [[श्लोक]] में जो 'यत्प्रभावश्च' पद से क्षेत्रज्ञ का प्रभाव सुनने का संकेत किया गया था, उसके अनुसार तीन श्लोकों द्वारा [[आत्मा]] के प्रभाव का वर्णन करते हैं- | ||
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हे < | हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! अनादि होने से और निर्गुण होने से यह अविनाशी परमात्मा शरीर में स्थित होने पर भी वास्तव में न तो कुछ करता है और न लिप्त ही होता है ।।31।। | ||
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==संबंधित लेख== | |||
{{गीता2}} | |||
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Latest revision as of 09:56, 6 January 2013
गीता अध्याय-13 श्लोक-31 / Gita Chapter-13 Verse-31
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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