गीता 15:15: Difference between revisions
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अब भगवान् अपने सर्वान्तर्यामित्व और सर्वज्ञत्व आदि गुणों से युक्त स्वरूप वर्णन करते हुए सब प्रकार से जानने योग्य अपने को बतलाते हैं- | अब भगवान् अपने सर्वान्तर्यामित्व और सर्वज्ञत्व आदि गुणों से युक्त स्वरूप वर्णन करते हुए सब प्रकार से जानने योग्य अपने को बतलाते हैं- | ||
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मैं ही सब प्राणियों के [[हृदय]] में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है और सब [[वेद|वेदों]]<ref>वेद [[हिन्दू धर्म]] के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई।</ref> द्वारा मैं ही जानने के योग्य हूँ तथा [[वेदान्त]] का कर्ता और वेदों को जानने वाला भी मैं ही हूँ ।।15।। | |||
मैं ही सब प्राणियों के हृदय में अन्तर्यामी रूप से स्थित हूँ तथा मुझसे ही स्मृति, ज्ञान और अपोहन होता है और सब < | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 11:09, 6 January 2013
गीता अध्याय-15 श्लोक-15 / Gita Chapter-15 Verse-15
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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