गीता 2:69: Difference between revisions
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इस प्रकार रात्रि के रूपक से ज्ञानी और अज्ञानियों की स्थिति का भेद दिखलाकर अब समुद्र की उपमा से यह भाव दिखलाते हैं कि ज्ञानी परम शान्ति को प्राप्त होता है और भोगों की कामना वाला अज्ञानी मनुष्य शान्ति को प्राप्त नहीं होता- | इस प्रकार रात्रि के रूपक से ज्ञानी और अज्ञानियों की स्थिति का भेद दिखलाकर अब [[समुद्र]] की उपमा से यह भाव दिखलाते हैं कि ज्ञानी परम शान्ति को प्राप्त होता है और भोगों की कामना वाला अज्ञानी मनुष्य शान्ति को प्राप्त नहीं होता- | ||
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सम्पूर्ण प्राणियों के लिये जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानन्द की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिस नाशवान् सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं, परमात्मा के तत्त्व को जानने वाले मुनि के लिये वह रात्रि के समान है ।।69।। | सम्पूर्ण प्राणियों के लिये जो रात्रि के समान है, उस नित्य ज्ञानस्वरूप परमानन्द की प्राप्ति में स्थितप्रज्ञ योगी जागता है और जिस नाशवान् सांसारिक सुख की प्राप्ति में सब प्राणी जागते हैं, परमात्मा के तत्त्व को जानने वाले [[मुनि]] के लिये वह रात्रि के समान है ।।69।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 09:03, 4 January 2013
गीता अध्याय-2 श्लोक-69 / Gita Chapter-2 Verse-69
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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