गीता 5:26: Difference between revisions

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कर्मयोग और सांख्ययोग – दोनों साधनों द्वारा परमात्मा की प्राप्ति और परमात्मा को प्राप्त महापुरुषों के लक्षण कहे गये । उक्त दोनों ही प्रकार के साधकों के लिये वैराग्यपूर्वक मन-इन्द्रियों को वश में करके ध्यान योग का साधन करना उपयोगी है; अत: अब संक्षेप में फलसहित ध्यान योग का वर्णन करते हैं-  
कर्मयोग और सांख्ययोग – दोनों साधनों द्वारा परमात्मा की प्राप्ति और परमात्मा को प्राप्त महापुरुषों के लक्षण कहे गये। उक्त दोनों ही प्रकार के साधकों के लिये वैराग्यपूर्वक मन-इन्द्रियों को वश में करके ध्यान योग का साधन करना उपयोगी है; अत: अब संक्षेप में फलसहित ध्यान योग का वर्णन करते हैं-  
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Latest revision as of 13:51, 4 January 2013

गीता अध्याय-5 श्लोक-26 / Gita Chapter-5 Verse-26

प्रसंग-


कर्मयोग और सांख्ययोग – दोनों साधनों द्वारा परमात्मा की प्राप्ति और परमात्मा को प्राप्त महापुरुषों के लक्षण कहे गये। उक्त दोनों ही प्रकार के साधकों के लिये वैराग्यपूर्वक मन-इन्द्रियों को वश में करके ध्यान योग का साधन करना उपयोगी है; अत: अब संक्षेप में फलसहित ध्यान योग का वर्णन करते हैं-


कामक्रोधवियुक्तानां यतीनां यतचेतसाम् ।
अभितो ब्रह्रानिर्वाणं वर्तते विदितात्मनाम् ।।26।।



काम-क्रोध से रहित, जीते हुए चित्तवाले, परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए ज्ञानी पुरुषों के लिये सब ओर से शान्त परब्रह्म परमात्मा ही परिपूर्ण हैं ।।26।।

To those wise men who are free from lust and anger, who have subdued their mind and have realized God, Brahma, the abode of eternal peace, is present all round..(26)


कामक्रोध = काम क्रोध से रहित; यतचेतसाम् = जीते हुए चित्त वाले; विदितात्मनाम् = परब्रह्म परमात्मा का साक्षात्कार किये हुए; यतीनाम् = ज्ञानी पुरुषों के लिये; अभित: = अब ओर से; ब्रह्म निर्वाणम् = शान्त परब्रह्म परमात्मा ही; वर्तते = प्राप्त है।



अध्याय पाँच श्लोक संख्या
Verses- Chapter-5

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8, 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 ,28 | 29

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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