गीता 6:33: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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समत्वयोग में मन की चंचलता को बाधक बतलाकर अब < | समत्वयोग में मन की चंचलता को बाधक बतलाकर अब [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> मन के निग्रह को अत्यन्त कठिन बतलाते हैं- | ||
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'''अर्जुन बोले-''' | '''अर्जुन बोले-''' | ||
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हे < | हे मधुसूदन<ref>मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ! जो यह योग आपने समभाव से कहा है, मन के चंचल होने से मैं इसकी नित्य स्थिति को नहीं देखता हूँ ।।33।। | ||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 06:32, 5 January 2013
गीता अध्याय-6 श्लोक-33 / Gita Chapter-6 Verse-33
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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