गीता 6:38: Difference between revisions

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Latest revision as of 06:46, 5 January 2013

गीता अध्याय-6 श्लोक-38 / Gita Chapter-6 Verse-38

प्रसंग-


इस प्रकार शंका उपस्थित करके, अब अर्जुन[1] उसकी निवृत्ति के लिये भगवान् से प्रार्थना करते हैं-


कच्चिन्नोभयविभ्रष्टश्छिन्नाभ्रमिव नश्यति ।
अप्रतिष्ठो महाबाहो विमूढो ब्रह्राण: पथि ।।38।।



हे महाबाहो ! क्या वह भगवत्प्राप्ति के मार्ग में मोहित और आश्रयरहित पुरुष छिन्न-भिन्न बादल की भाँति दोनों ओर से भ्रष्ट होकर नष्ट तो नहीं हो जाता है ? ।।38।।

Krishna, strayed from the path leading to God-realization and heavenly enjoyment ? (38)


महाबाहो = हे महाबाहो ; कच्चित् = क्या (वह) ; ब्रह्मण: = भगवत्प्राप्ति के ; पथि = मार्ग में ; विमूढ: = मोहित हुआ ; अप्रतिष्ठ: = आश्रयरहित पुरुष ; छिन्नाभ्रम् = छिन्न भिन्न बादल की ; इव = भांति ; उभयविभ्रष्ट: = दोनों ओर से अर्थात् भगवत् प्राप्ति और सांसारकि भोगों से भ्रष्ट हुआ ; न नश्यति = नष्ट तो नहीं हो जाता है ;



अध्याय छ: श्लोक संख्या
Verses- Chapter-6

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।

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