गीता 8:25: Difference between revisions

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जिस मार्ग में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि-अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छ: महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपर्युक्त [[देवता|देवताओं]] द्वारा क्रम से ले गया हुआ चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है ।।25।।
जिस मार्ग में धूमाभिमानी [[देवता]] है, रात्रि-अभिमानी देवता है तथा [[कृष्ण पक्ष]] का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छ: महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपर्युक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ [[चन्द्रमा]] की ज्योति को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है ।।25।।


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Latest revision as of 09:37, 5 January 2013

गीता अध्याय-8 श्लोक-25 / Gita Chapter-8 Verse-25

प्रसंग-


इस प्रकार वापस न लौटने वालों के मार्ग का वर्णन करके अब जिस मार्ग से गये हुए साधक वापस लौटते हैं, उसका वर्णन किया जाता है-


धूमो रात्रिस्तथा कृष्ण:
षण्मासा दक्षिणायनम् ।
तत्र चान्द्रमसं ज्योति-
र्योगी प्राप्य निवर्तते ।।25।।



जिस मार्ग में धूमाभिमानी देवता है, रात्रि-अभिमानी देवता है तथा कृष्ण पक्ष का अभिमानी देवता है और दक्षिणायन के छ: महीनों का अभिमानी देवता है, उस मार्ग में मरकर गया हुआ सकाम कर्म करने वाला योगी उपर्युक्त देवताओं द्वारा क्रम से ले गया हुआ चन्द्रमा की ज्योति को प्राप्त होकर स्वर्ग में अपने शुभ कर्मों का फल भोगकर वापस आता है ।।25।।

The other path is that wherein are stationed the gods presiding over smoke,night,the dark fortnight,and the six months of the southward course of the sun;the Yogi taking to this path after death is led by the above gods,one after another,and attaining the lustre of the moon (and enjoying the fruit of this meritorious deeds in heaven) returns to this mortal world.


धूम: = धूमाभिमानी देवता है (और) ; रात्रि: = रात्रि अभिमानी देवता है ; तथा = तथा ; कृष्ण: = कृष्णपक्ष का अभिमानी देवता है (और) (उपरोक्त देवताओं द्वारा क्रमसे ले गया हुआ) ; चान्द्रमसम् = चन्द्रमाकी ; ज्योति: = ज्योति को ; षण्मासा: दक्षिणायनम् = दक्षिणायन के छ महीनों का अभिमानी देवता है ; तत्र = उस मार्ग में (मरकर गया हुआ) ; योगी = सकाम कर्म योगी ; प्राप्य = प्राप्त होकर (स्वर्ग में अपने शुभकर्मों का फल भोगकर) ; निवर्तते = पीछा आता है



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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