गीता 18:24: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
No edit summary
 
(2 intermediate revisions by 2 users not shown)
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 34: Line 33:
|-
|-
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
| style="width:100%;text-align:center; font-size:110%;padding:5px;" valign="top" |
तु = और ; यत् = जो ; कर्म = कर्म ; कामेप्सुना = फल को चाहनेवाले ; वा = और ; साहंकारेण = अहंकारयुक्त पुरुषद्वारा ; बहुलायासम् = बहुत परिश्रमसे युक्त है ; पुन: = तथा ; क्रियते = किया जाता हे ; तत् = वह (कर्म) ; राजसम् = राजस ; उदाहृतम् = कहा गया है ;
तु = और ; यत् = जो ; कर्म = कर्म ; कामेप्सुना = फल को चाहने वाले ; वा = और ; साहंकारेण = अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा ; बहुलायासम् = बहुत परिश्रम से युक्त है ; पुन: = तथा ; क्रियते = किया जाता हे ; तत् = वह (कर्म) ; राजसम् = राजस ; उदाहृतम् = कहा गया है ;
|-
|-
|}
|}
Line 58: Line 57:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Latest revision as of 05:36, 7 January 2013

गीता अध्याय-18 श्लोक-24 / Gita Chapter-18 Verse-24

प्रसंग-


अब राजस कर्म के लक्षण बतलाते हैं-


यत्तु कामेप्सुना कर्म साहंकारेण वा पुन: ।
क्रियते बहुलायासं तद्राजसमुदाहृतम् ।।24।।



परन्तु जो कर्म बहुत परिश्रम से युक्त होता है तथा भोगों को चाहने वाले पुरुष द्वारा या अहंकार युक्त पुरुष द्वारा किया जाता है, वह कर्म राजस कहा गया है ।।24।।

That action, however, which involves much strain and is performed by one who seeks enjoyments or by a man full of oegotism, has been spoken as action in the mode of passion (Rajasika) . (24)


तु = और ; यत् = जो ; कर्म = कर्म ; कामेप्सुना = फल को चाहने वाले ; वा = और ; साहंकारेण = अहंकारयुक्त पुरुष द्वारा ; बहुलायासम् = बहुत परिश्रम से युक्त है ; पुन: = तथा ; क्रियते = किया जाता हे ; तत् = वह (कर्म) ; राजसम् = राजस ; उदाहृतम् = कहा गया है ;



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख