गीता 2:41: Difference between revisions
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इस प्रकार कर्मयोगी के लिये अवश्य धारण करने के योग्य निश्चयात्मिका बुद्धिका और त्याग करने योग्य सकाम मनुष्यों की बुद्धियों का स्वरूप बतलाकर अब तीन श्लोकों में सकाम भावको त्याज्य बतलाने के लिये सकाम मनुष्यों का स्वभाव, सिद्धान्त और आचार-व्यवहार का वर्णन करते हैं- | इस प्रकार कर्मयोगी के लिये अवश्य धारण करने के योग्य निश्चयात्मिका बुद्धिका और त्याग करने योग्य सकाम मनुष्यों की बुद्धियों का स्वरूप बतलाकर अब तीन [[श्लोक|श्लोकों]] में सकाम भावको त्याज्य बतलाने के लिये सकाम मनुष्यों का स्वभाव, सिद्धान्त और आचार-व्यवहार का वर्णन करते हैं- | ||
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हे < | हे [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> ! इस कर्मयोग में निश्चयात्मिका बुद्धि एक ही होती है; किंतु अस्थिर विचार वाले विवेकहीन सकाम मनुष्यों की बुद्धियाँ निश्चय ही बहुत भेदों वाली और अनन्त होती हैं ।।41।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 08:04, 4 January 2013
गीता अध्याय-2 श्लोक-41 / Gita Chapter-2 Verse-41
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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