गीता 2:58: Difference between revisions
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पूर्व श्लोक में तीसरे प्रश्न का उत्तर देते हुए स्थित प्रज्ञ के बैठने का प्रकार बतलाकर अब उसमें होने वाली शंकाओं का समाधान करने के लिये अन्य प्रकार से किये जाने वाले इन्द्रिय संयम की अपेक्षा स्थित प्रज्ञ के इन्द्रिय संयम की विलक्षणता दिखलाते हैं- | पूर्व [[श्लोक]] में तीसरे प्रश्न का उत्तर देते हुए स्थित प्रज्ञ के बैठने का प्रकार बतलाकर अब उसमें होने वाली शंकाओं का समाधान करने के लिये अन्य प्रकार से किये जाने वाले इन्द्रिय संयम की अपेक्षा स्थित प्रज्ञ के इन्द्रिय संयम की विलक्षणता दिखलाते हैं- | ||
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जैसे | जैसे [[कछुआ]] अपने सब अंगों को समेट लेता है, वैसे ही जिसने अपनी सब [[इन्द्रियाँ]] को हटा लिया है, उसकी बुद्धि स्थिर हो जाती है ।।58।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
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==संबंधित लेख== | |||
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Latest revision as of 08:47, 4 January 2013
गीता अध्याय-2 श्लोक-58 / Gita Chapter-2 Verse-58
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टीका टिप्पणी और संदर्भसंबंधित लेख |
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