गीता 2:1: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - " मे " to " में ")
m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
Line 62: Line 62:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{प्रचार}}
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Revision as of 05:53, 14 June 2011

गीता अध्याय-2 श्लोक-1 / Gita Chapter-2 Verse-1

प्रसंग-


भगवान् <balloon link="कृष्ण" title="गीता कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">श्रीकृष्ण</balloon> ने <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> से क्या बात कही और किस प्रकार उसे युद्ध के लिये पुन: तैयार किया, यह सब बतलाने की आवश्कता होने पर <balloon link="संजय" title="संजय को दिव्य दृष्टि का वरदान था । जिससे महाभारत युद्ध में होने वाली घटनाओं का आँखों देखा हाल बताने में संजय, सक्षम था । श्रीमद् भागवत् गीता का उपदेश जो कृष्ण ने अर्जुन को दिया, वह भी संजय द्वारा ही सुनाया गया।¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">संजय</balloon> अर्जुन की स्थिति का वर्णन करते हुए दूसरे अध्याय का आरम्भ करते हैं- इस अध्याय में शरणागत् अर्जुन द्वारा अपने शोक की निवृति का एकान्तिक उपाय पूछे जाने पर पहले-पहले भगवान् ने तीसवें श्लोक तक आत्मतत्त्व का वर्णन किया है । सांख्य योग के साधन में आत्मतत्त्व का श्रवण, मनन और निदिध्यासन ही मुख्य है । यद्यपि इस अध्याय में तीसवें श्लोक के बाद स्वधर्म का वर्णन करके कर्मयोग स्वरूप भी समझाया गया है, परंतु उपदेश का आरम्भ सांख्ययोग से ही हुआ है और आत्मतत्त्व का वर्णन अन्य अध्यायों की अपेक्षा इसमें अधिक विस्तारपूर्वक हुआ है इस कारण इस अध्याय का नाम 'सांख्ययोग' रखा गया है ।


तं तथा कृपयाविष्टमश्रुपूर्णाकुलेक्षणम् ।
विषीदन्तमिदं वाक्यमुवाच मधुसूदन: ।।1।।



संजय बोले-


उस प्रकार करुणा से व्याप्त और आँसुओं से पूर्ण तथा व्याकुल नेत्रों वाले शोकयुक्त उस अर्जुन के प्रति भगवान् <balloon title="मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है।" style="color:green">मधुसूदन</balloon> ने यह वचन कहा ।।1।।

Sanjaya said:


Lord Krishna then addressed the following words to Arjuna, who was as mentioned before overhelmed with pity, whose eyes were filled with tears and agitated, and who was full of sorrow.(1)


तथा = पूर्वोक्त प्रकारसे ; कृपया = करुणा करके ; आविष्टम् = व्याप्त (और) ; अश्रुपूर्णा कुलेक्षणम् = आंसुओंसे पूर्ण (तथा) व्याकुल नेत्रोंवाले ; विषीदन्तम् = शोकयुक्त ; तम् = उस (अर्जुन) के प्रति ; मधुसूदन: = भगवान् मधुसूदनने ; इदम् = यह ; वाक्यम् = वचन ; उवाच = कहा



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)