चित्रांगदा: Difference between revisions
Jump to navigation
Jump to search
[unchecked revision] | [unchecked revision] |
m (Text replace - "{{महाभारत}}" to "==अन्य लिंक== {{महाभारत}}") |
No edit summary |
||
Line 5: | Line 5: | ||
==टीका-टिप्पणी== | ==टीका-टिप्पणी== | ||
<references/> | <references/> | ||
==अन्य लिंक== | ==अन्य लिंक== | ||
{{महाभारत}} | {{महाभारत}} |
Revision as of 07:00, 21 March 2010
चित्रांगदा / Chitrangada
- चित्रांगदा मणिपुर नरेश चित्रवाहन की पुत्री थी। जब वनवासी अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो उसके रूप पर मुग्ध हो गये। उन्होंने नरेश से उसकी कन्या मांगी। राजा चित्रवाहन ने अर्जुन से चित्रांगदा का विवाह करना इस शर्त पर स्वीकार कर लिया कि उसका पुत्र चित्रवाहन के पास ही रहेगा क्योंकि पूर्व युग में उसके पूर्वजों में प्रभंजन नामक राजा हुए थे। उन्होंने पुत्र की कामना से तपस्या की थी तो शिव ने उन्हें पुत्र प्राप्त करने का वरदान देते हुए यह भी कहा था कि हर पीढ़ी में एक ही संतान हुआ करेगी अत: चित्रवाहन की संतान वह कन्या ही थी। अर्जुन ने शर्त स्वीकार करके उससे विवाह कर लिया। चित्रांगदा के पुत्र का नाम 'बभ्रुवाहन' रखा गया। पुत्र-जन्म के उपरांत उसके पालन का भार चित्रांगदा पर छोड़ अर्जुन ने विदा ली। चलने से पूर्व अर्जुन ने कहा कि कालांतर में युधिष्ठिर राजसूय यज्ञ करेंगे, तभी चित्रांगदा अपने पिता के साथ इन्द्रप्रस्थ आ जाय। वहां अर्जुन के सभी संबंधियों से मिलने का सुयोग मिल जायेगां [1]
- अश्वमेध यज्ञ के संदर्भ में अर्जुन मणिपुर पहुंचे तो बभ्रुवाहन ने उनका स्वागत किया। अर्जुन क्रुद्ध हो उठे। उन्होंने यह क्षत्रियोचित नहीं माना तथा पुत्र को युद्ध के लिए ललकारा। उलूपी (अर्जुन की दूसरी पत्नी) ने भी अपने सौतेले पुत्र बभ्रुवाहन को युद्ध के लिए प्रेरित किया। युद्ध में अर्जुन अपने ही बेटे के हाथों मारा गयां चित्रांगदा उलूपी पर बहुत रूष्ट हुई। उलूपी ने संजीवनी मणि से अर्जुन को पुनर्जीवित किया तथा बताया कि वह एक बार गंगा तट पर गयी थी। वहां वसु नामक देवता गणों का गंगा से वार्तालाप हुआ था और उन्होंने यह शाप दिया था कि गंगापुत्र को शिखंडी की आड़ से मारने के कारण अर्जुन अपने पुत्र के हाथों भूमिसात होंगे, तभी पापमुक्त हो पायेंगे। इसी कारण से उलूपी ने भी बभ्रुवाहन को लड़ने के लिए प्रेरित किया था। [2]