कृपाचार्य: Difference between revisions

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Revision as of 07:34, 21 March 2010

कृपाचार्य / Krapacharya

  • कृपाचार्य गौतम के एक प्रसिद्ध पुत्र हुए हैं, शरद्वान् गौतम। वे घोर तपस्वी थे। उनकी विकट तपस्या ने इन्द्र को अत्यंत चिंता में डाल दिया। इन्द्र ने उनकी तपस्या को भंग करने के लिए जानपदी नामक देवकन्या को उनके आश्रम में भेजा। उसके सौंदर्य पर मुग्ध होकर शरद्वान गौतम का अनजाने ही वीर्यपात हो गया। वह वीर्य सरकंडे के समूह पर गिरकर दो भागों में विभक्त हो गया, जिससे एक कन्या और एक पुत्र का जन्म हुआ। शरद्वान धनुर्वेत्ता थे। वे धनुषवाण तथा काला मृगचर्म वहीं छोड़कर कहीं चले गये।
  • शिकार खेलते हुए शांतनु को वे शिशु प्राप्त हुए। उन दोनों का नाम कृपी और कृप रखकर शांतनु ने उनका लालन-पालन किया।
  • शरद्वान गौतम ने गुप्त रूप से कृप को धनुर्विद्या सिखायी। कृप ही बड़े होकर कृपाचार्य बने तथा धृतराष्ट्र और पांडु की संतान को धनुर्विद्या की शिक्षा दी। [1]
  • महाभारत युद्ध में कृपाचार्य कौरवों की ओर से सक्रिय थे। कर्ण के वधोपरांत उन्होंने दुर्योधन को बहुत समझाया कि उसे पांडवों से संधि कर लेनी चाहिए किंतु दुर्योधन ने अपने किये हुए अन्यायों को याद कर कहा कि न पांडव इन बातों को भूल सकते हैं और न उसे क्षमा कर सकते हैं। युद्ध में मारे जाने के सिवा अब कोई भी चारा उसके लिए शेष नहीं है। अन्यथा उसकी सद्गति भी असंभव है। [2]

टीका-टिप्पणी

  1. महाभारत, आदिपर्व, अध्याय 128
  2. महाभारत, शल्यपर्व, अ0 5, श्लोक 1 से 27 तक


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