गीता 12:20: Difference between revisions

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Revision as of 12:38, 21 March 2010

गीता अध्याय-12 श्लोक-20 / Gita Chapter-12 Verse-20

प्रसंग-


परमात्मा को प्राप्त हुए सिद्ध भक्तों के लक्षण बतलाकर अब उन लक्षणों को आदर्श मानकर बड़े प्रयत्न के साथ उनका भली-भाँति सेवन करने वाले, परम श्रद्धालु, शरणागत भक्तों की प्रशंसा करने के लिये, उनको अपना अत्यन्त प्रिय बतलाकर भगवान् इस अध्याय का उपसंहार करते हैं


ये तु धर्म्यामृतमिदं यथोक्तं पर्युपासते ।
श्रद्दधाना मत्परमा भक्तास्तेऽतीव मे प्रिया: ।।20।।



परन्तु जो श्रद्धायुक्त पुरुष मेरे परायण होकर इस ऊपर कहे हुए धर्ममय अमृत को निष्काम प्रेम भाव से सेवन करते हैं, वे भक्त मुझको अतिशय प्रिय हैं ।।20।।

He who follows this imperishable path of devotional service and who completely engages himself with faith, making Me the supreme goal, is very, very dear to Me. (20)


तु = और; ये = जो; मत्परमा: = मेरे परायण हुए; श्रदृधाना: = श्रद्वायुक्त पुरुष; इदम् = इस; यथाउक्तम् = ऊपर कहे हुए; धर्म्यामृतम् = धर्ममय अमृत को; पर्युपासते = निष्काम भाव से सेवन करते है; ते = वे; भक्ता: = भक्त; अतीव = अतिशय; प्रिया: = प्रिय है



अध्याय बारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-12

1 | 2 | 3,4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13, 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)