गीता 13:16: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
No edit summary
Line 1: Line 1:
<table class="gita" width="100%" align="left">
<table class="gita" width="100%" align="left">
<tr>
<tr>
Line 20: Line 19:
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|


वह परमात्मा विभाग रहित एक रूप से आकाश के सदृश परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त-सा स्थित प्रतीत होता है । तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णु रूप से भूतों को धारण पोषण करने वाला और रुद्ररूप से संहार करने वाला तथा ब्रह्म रूप से सबको उत्पन्न करने वाला है ।।16।।
वह परमात्मा विभाग रहित एक रूप से आकाश के सदृश परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त-सा स्थित प्रतीत होता है। तथा वह जानने योग्य परमात्मा [[विष्णु]] रूप से भूतों को धारण पोषण करने वाला और रुद्ररूप से संहार करने वाला तथा ब्रह्म रूप से सबको उत्पन्न करने वाला है ।।16।।


| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
| style="width:50%; font-size:120%;padding:10px;" valign="top"|
Line 54: Line 53:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{प्रचार}}
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
<references/>
==संबंधित लेख==
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Revision as of 09:23, 6 January 2013

गीता अध्याय-13 श्लोक-16 / Gita Chapter-13 Verse-16

अविभक्तं च भूतेषु विभक्तमिव च स्थितम् ।
भूतभर्तृं च तज्ज्ञेयं ग्रसिष्णु प्रभविष्णु च ।।16।।



वह परमात्मा विभाग रहित एक रूप से आकाश के सदृश परिपूर्ण होने पर भी चराचर सम्पूर्ण भूतों में विभक्त-सा स्थित प्रतीत होता है। तथा वह जानने योग्य परमात्मा विष्णु रूप से भूतों को धारण पोषण करने वाला और रुद्ररूप से संहार करने वाला तथा ब्रह्म रूप से सबको उत्पन्न करने वाला है ।।16।।

Though integral like space in its undivided aspect. It appears divided as it were in all animate and inanimate beings. And that godhead, which is the only object worth knowing, is the sustainer of beings (as visnu), the destroyer (as rudra) and the creator of all (as Brahma) . (16)


च = और (वह) ; अविभक्तम् = विभागरहित एकरूप से आकाश के सद्य्श परिपूर्ण हुआ ; स्थितम् = स्थित (प्रतीत होता है तथा) तत् = वह ; ज्ञेयम् = जानने योग्य परमात्मा ; भूतभर्तृ = विष्णुरूप से भूतों को धारण पोषण करने वाला ; च = भी ; भूतेषु = चराचर संपूर्ण भूतों में ; विभक्तम् = पृथक् पृथक्के ; इव = सद्य्श ; च = और ; ग्रसिष्णु = रुद्ररूप से संहार करनेवाला ; च = तथा ; प्रभविष्णु = ब्रह्मारूप से सबका उत्पन्न करने वाला है ;



अध्याय तेरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-13

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख