गीता 18:1: Difference between revisions
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'''प्रसंग-''' | '''प्रसंग-''' | ||
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< | [[अर्जुन]]<ref>[[महाभारत]] के मुख्य पात्र है। वे [[पाण्डु]] एवं [[कुन्ती]] के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। [[द्रोणाचार्य]] के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। [[द्रौपदी]] को [[स्वयंवर]] में भी उन्होंने ही जीता था।</ref> इस अठारहवें अध्याय में समस्त अध्यायों के उपदेश का सार जानने के उद्देश्य से भगवान् के सामने संन्यास यानी ज्ञान योग का और त्याग यानी फलासक्ति के त्याग रूप कर्मयोग का तत्त्व भली-भाँति अलग-अलग जानने की इच्छा प्रकट करते हैं- | ||
'''अर्जुन उवाच-''' | '''अर्जुन उवाच-''' | ||
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'''अर्जुन बोले-''' | '''अर्जुन बोले-''' | ||
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हे महाबाहो ! हे अन्तर्यामिन् ! हे < | हे महाबाहो ! हे अन्तर्यामिन् ! हे वासुदेव<ref>मधुसूदन, केशव, पुरुषोत्तम, वासुदेव, माधव, महाबाहो, अन्तर्यामिन्, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् [[कृष्ण]] का ही सम्बोधन है।</ref> ! मैं संन्यास और त्याग के तत्त्व को पृथक्-पृथक् जानना चाहता हूँ ।।1।। | ||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | |||
<references/> | |||
==संबंधित लेख== | |||
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Revision as of 13:32, 6 January 2013
गीता अध्याय-18 श्लोक-1 / Gita Chapter-18 Verse-1
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख |
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