गीता 1:28-29: Difference between revisions

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Revision as of 13:00, 3 January 2013

गीता अध्याय-1 श्लोक-28,29 / Gita Chapter-1 Verse-28,29

दृष्ट्वेमं स्वजनं कृष्णं युयुत्सुं समुपस्थितम् ।।28।।
सीदन्ति मम गात्राणि मुखं च परिशुष्यति ।
वेपथुश्च शरीरे मे रोमहर्षश्च जायते ।।29।।



अर्जुन[1] बोले


हे कृष्ण[2] ! युद्ध क्षेत्र में डटे हुए युद्ध के अभिलाषी इस स्वजन समुदाय को देखकर मेरे अंग शिथिल हुए जा रहे हैं और मुख सूखा जा रहा है तथा मेरे शरीर में कम्पन एवं रोमांच हो रहा है ।।28वें का उत्तरार्ध और 29।।

Arjuna said :


Krishna, at the sight of these kinsmen arrayed for battle my limbs give way, and my mouth is parching, nay, a shiver runs through my body and hair stand upright. (2nd half of 28 and 29)


कृष्ण =हे कृष्ण; इमम् =इस; युयुत्सुम् = युद्व की इच्छा वाले; समुपस्थितम् =खड़े हुए; स्वजनम् = स्वजन समुदाय को; दृष्टा = देखकर; मम = मेरे; गात्राणि =अंग; सीदन्ति = शिथिल हुए जाते हैं; च = और; मुखम् =मुख (भी); परिशुष्यति = सूखा जाता है; च = और; मे = मेरे; शरीरे =शरीर में; वेपथु: =कम्प; च = तथा; रोमहर्ष: =रोमांच; जायते =होता है



अध्याय एक श्लोक संख्या
Verses- Chapter-1

1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे। अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वह द्रोणाचार्य का सबसे प्रिय शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला भी वही था।
  2. 'गीता' कृष्ण द्वारा अर्जुन को दिया गया उपदेश है। कृष्ण भगवान विष्णु के अवतार माने जाते हैं। कृष्ण की स्तुति लगभग सारे भारत में किसी न किसी रूप में की जाती है।

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