गीता 8:18: Difference between revisions

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सम्पूर्ण चराचर भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेश काल में अव्यक्त से अर्थात् ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेश काल में उस अव्यक्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ही लीन हो जाते हैं ।।18।।
सम्पूर्ण चराचर भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेश काल में अव्यक्त से अर्थात् [[ब्रह्मा]] के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेश काल में उस अव्यक्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ही लीन हो जाते हैं ।।18।।
 
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Revision as of 09:20, 5 January 2013

गीता अध्याय-8 श्लोक-18 / Gita Chapter-8 Verse-18

प्रसंग-


ब्रह्मा[1] के दिन-रात्रि का परिमाण बतलाकर अब उस दिन और रात के आरम्भ में बार-बार होने वाली समस्त भूतों की उत्पत्ति और प्रलय का वर्णन करते हुए उन सबकी अनित्यता का कथन करते हैं-


अव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे ।
रात्र्यागमे प्रलीयन्ते तत्रैवाव्यक्तसंज्ञके ।।18।।



सम्पूर्ण चराचर भूतगण ब्रह्मा के दिन के प्रवेश काल में अव्यक्त से अर्थात् ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से उत्पन्न होते हैं और ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेश काल में उस अव्यक्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ही लीन हो जाते हैं ।।18।।

All embodied beings emanate from the unmanifest (i.e., Brahma’s subtle body) at the coming of the cosmic day; at the cosmic nightfall they merge into the same subtle body of brahma, known as the unmanifest. (18)


सर्वा: = संपूर्ण ; व्यक्तय: = द्य्श्यमात्र भूतगण ; अहराग में = ब्रह्मा के दिन के प्रवेशकाल में ; अव्यक्तात् = अव्यक्त से अर्थात् ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से ; अव्यक्तात् = अव्यक्त से अर्थात् ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर से ; प्रभवन्ति = उत्पन्न होते हैं ; रात्र्यागमें = ब्रह्मा की रात्रि के प्रवेश काल में ; तत्र = उस ; अव्यक्तसंज्ञके = अव्यक्त नामक ब्रह्मा के सूक्ष्म शरीर में ; एव = ही ; प्रलीयन्ते = लय होते हैं



अध्याय आठ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-8

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. सर्वश्रेष्ठ पौराणिक त्रिदेवों में ब्रह्मा, विष्णु एवं शिव की गणना होती है। इनमें ब्रह्मा का नाम पहले आता है, क्योंकि वे विश्व के आद्य सृष्टा, प्रजापति, पितामह तथा हिरण्यगर्भ हैं।

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