गीता 14:25: Difference between revisions

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Revision as of 13:10, 21 March 2010

गीता अध्याय-14 श्लोक-25 / Gita Chapter-14 Verse-25


मानापमानयोस्तुल्यस्तुल्यो मित्रारिपक्षयो: ।
सर्वारम्भपरित्यागी गुणातीत: स उच्यते ।।25।।



जो मान और अपमान में सम है, मित्र और वैरी के पक्ष में भी सम है एवं सम्पूर्ण आरम्भों में कर्तापन के अभिमान से रहित है, वह पुरुष गुणातीत कहा जाता है ।।25।।

He who is indifferent to honour and ignominy; is alike to the cause of a friend as well as to that of an enemy, and has renounced the senses of doership in all undertakings, is said to have risen above the three Gunas.(25)


मानापमानयो: = मान और अपमान में (एवं) ; मित्रारिपक्षयो: = मित्र और वैरी के पक्ष में (भी) ; तुल्य: = सम है ; स: = वह ; सर्वारम्भपरित्यागी ; = संपूर्ण आरम्भों में कर्तापन के अभिमान से रहित हुआ पुरुष ; गुणातीत: = गुणातीत ; उच्यते = कहा जाता है



अध्याय चौदह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-14

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)