गीता 16:11: Difference between revisions

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Revision as of 13:17, 21 March 2010

गीता अध्याय-16 श्लोक-11 / Gita Chapter-16 Verse-11

चिन्तामपरिमेयां च प्रलयान्तामुपाश्रिता: ।

कामोपभोग परमा एतावदिति निश्चिता: ।।11।।


तथा वे मृत्यु पर्यन्त रहने वाली असंख्य चिन्ताओं का आश्रय लेने वाले, विषय भोगों के भोगने में तत्पर रहने वाले और 'इतना ही सुख है' इस प्रकार मानने वाले होते हैं ।।11।।

Giving themselves up to innumerable cares ending only with death, they remain devoted to the enjoyment of sensuous pleasures and are positive in their belief that this is the highest limit of joy. (11)


प्रलयान्ताम् = मरणपर्यन्त रहने वाली ; अपरिमेयाम् = अनन्त ; चिन्ताम् = चिन्ताओं को ; उपाश्रिता: = आश्रय किये हुए ; च = और ; कामोपभोगपरमा: = विषयभोगों के भोगने में तत्पर हुए (एवं) ; एतावत् = इतनामात्र ही आनन्द है ; इति = ऐसे ; निश्र्चिता: = मानने वाले है ;



अध्याय सोलह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-16

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15, 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)