गीता 17:27: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
Line 53: Line 53:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Revision as of 13:23, 21 March 2010

गीता अध्याय-17 श्लोक-27 / Gita Chapter-17 Verse-27


यज्ञे तपसि दाने च स्थिति: सदिति चोच्यते ।
कर्म चैव तदर्थीयं सदित्येवाभिधीयते ।।27।।



तथा यज्ञ, तप और दान में जो स्थिति है, वह भी 'सत्' इस प्रकार कही जाती है और उस परमात्मा के लिये किया हुआ कर्म निश्चयपूर्वक सत्- ऐसे कहा जाता है ।।27।

And steadfastness in sacrifice, austerity and charity is likewise spoken of as 'Sat' and action for the sake of God is verily termed as 'Sat'.(27)


च = तथा ; यज्ञे = यज्ञ ; तपसि = तप ; च = और ; दाने = दान में ; (या) = जो ; स्थिति: = स्थिति है ; (सा) = वह ; एव = भी ; सत् = भी ; सत् = सत् है ; इति = ऐसे ; उच्यते = कही जाती है ; च = और ; तदर्थीयम् = उस परमात्मा के अर्थ किया हुआ ; कर्म = कर्म ; एव = निश्र्चयपूर्वक ; सत् = सत् है ; इति = ऐसे ; अभिधीयते = कहा जाता है



अध्याय सतरह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-17

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)