गीता 18:71: Difference between revisions

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Revision as of 10:41, 21 March 2010

गीता अध्याय-18 श्लोक-71 / Gita Chapter-18 Verse-71

प्रसंग-


इस प्रकार गीताशास्त्र के अध्ययन का माहात्म्य बतलाकर, अब जो उपर्युक्त प्रकार से अध्ययन करने में असमर्थ हैं- ऐसे मनुष्यों के लिये उसके श्रवण का फल बतलाते हैं-


श्रद्धावाननसूयश्च श्रृणुयादपि यो नर: ।
सोऽपि मुक्त: शुभांल्लोकान्प्राप्नुयात्पुण्यकर्मणाम् ।।71।।



जो मनुष्य श्रद्धायुक्त और दोषदृष्टि से रहित होकर इस गीताशास्त्र का श्रवण भी करेगा, वह भी पापों से मुक्त होकर उत्तम कर्म करने वालों के श्रेष्ठ लोकों को प्राप्त होगा ।।71।।

The man who hears the holy Gita with reverence and in an uncarping spirit,—liberated from sin, he too shall reach the happy worlds of the virtuous. (71)


य: = जो ; नर: = पुरुष ; श्रद्धावान् = श्रद्धायुक्त ; च = और ; अनसूय: = दोषद्ष्टि से रहित हुआ (इस गीता शास्त्र का) ; श्रृणुयात् अपि = श्रवणमात्र भी करेगा ; स: = वह ; अपि = भी ; मुक्त: = पापों से मुक्त हुआ ; पुण्यकर्मणाम् = उत्तम कर्म करने वालों के ; शुभान् = श्रेष्ठ ; लोकान् = लोकों को ; प्राप्नुयात् = प्राप्त होवेगा



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)