गीता 10:19: Difference between revisions

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Latest revision as of 12:28, 5 January 2013

गीता अध्याय-10 श्लोक-19 / Gita Chapter-10 Verse-19

प्रसंग-


अर्जुन[1] के द्वारा योग और विभूतियों का विस्तारपूर्वक पूर्ण रूप से वर्णन करने के लिये प्रार्थना की जाने पर भगवान् पहले अपने विस्तार की अनन्तता बतलाकर प्रधानता से अपनी विभूतियों का वर्णन करने की प्रतिज्ञा करते हैं –


श्रीभगवानुवाच
हन्त ते कथयिष्यामि दिव्या ह्रात्मविभूतय: ।
प्राधान्यत: कुरुश्रेष्ठ नास्त्यन्तो विस्तरस्य मे ।।19।।



श्रीभगवान् बोले –


हे कुरुश्रेष्ठ[2] ! अब मैं जो मेरी दिव्य विभूतियाँ हैं, उनको तेरे लिये प्रधानता से कहूँगा; क्योंकि मेरे विस्तार का अन्त नहीं है ।।19।।

Shri Bhagavan said:


Arjuna, now I shall tell you my conspicuous divine glories; for there is no limit to my magnitude. (19)


हन्त = अब(मैं); दिव्या: आत्मविभूतय: = अपनी दिव्य विभूतियों को; प्राधान्यत: = प्रधानता से; कथयिष्यामि = कहूंगा; हि = क्योंकि; विस्तरस्य = विस्तार का; अस्ति = है



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. महाभारत के मुख्य पात्र है। वे पाण्डु एवं कुन्ती के तीसरे पुत्र थे। सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर के रूप में वे प्रसिद्ध थे। द्रोणाचार्य के सबसे प्रिय शिष्य भी वही थे। द्रौपदी को स्वयंवर में भी उन्होंने ही जीता था।
  2. पार्थ, भारत, कुरुश्रेष्ठ, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।

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