गीता 2:35: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
Line 55: Line 55:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Revision as of 14:24, 21 March 2010

गीता अध्याय-2 श्लोक-35 / Gita Chapter-2 Verse-35


भयाद्रणादुपरतं मंस्यन्ते त्वां महारथा: ।
येषां च त्वं बहुमतो भूत्वा यास्यासि लाघवम् ।।35।।




और जिनकी दृष्टि में तू पहले बहुत सम्मानित होकर अब लघुता को प्राप्त होगा, वे महारथी लोग तुझे भय के कारण युद्ध से हटा हुआ मानेंगे ।।35।।


And the warrior-chiefs who thought highly of you, will now despise you, thinking that it was fear which drove you from battle.(35)


च = और ; येषाम् = जिनके ; त्वम् = तूं ; लाघवम् = तुच्छताको ; यास्यसि = प्राप्त होगा (वे) ; महारथा: = महारथीलोग ; त्वाम् = तुझे ; बहुमत: = बहुत माननीय ; भूत्वा = होकर (भी अब) ; भयात् =भयके कारण ; रणात् = युद्धसे ; उपरतम् = उपराम हुआ ; मंस्यन्ते = मानेंगे ;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)