गीता 4:39: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (1 अवतरण)
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
Line 60: Line 60:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Revision as of 15:03, 21 March 2010

गीता अध्याय-4 श्लोक-39 / Gita Chapter-4 Verse-39

प्रसंग-


इस प्रकार श्रद्धावान् को ज्ञान की प्राप्ति और उस ज्ञान से परम शान्ति की प्राप्ति बतलाकर अब श्रद्धा और विवेकहीन संशयात्मा की निन्दा करते हैं-


श्रद्धावांल्लभते ज्ञानं
तत्परं: संयतेन्द्रिय: ।
ज्ञानं लब्ध्वा परां शान्ति-
मचिरेणाधिगच्छति ।।39।।




जितेन्द्रिय, साधनपरायण और श्रद्धावान् मनुष्य ज्ञान को प्राप्त होता है तथा ज्ञान को प्राप्त होकर वह बिना विलम्ब के तत्काल ही भगवत्प्राप्ति रूप परम शान्ति को प्राप्त हो जाता है ।।39।।


He who has mastered his senses, is exclusively devoted to his practice and is full of faith, attains knowledge; having had the revelation to truth, he immediately attains supreme peace (in the form of God-realization).(39)


संयतेन्द्रिय: = जितेन्द्रिय; तत्पर: = तत्पर हुआ; श्रद्वावान् = श्रद्वावान् पुरुष; ज्ञानम् = ज्ञान को; लभते =प्राप्त होता है; ज्ञानम् = ज्ञान को; लब्ध्वा = प्राप्त होकर; अचिरेण = तत्क्षण (भगवत प्राप्तिरूप) पराम् = परम; शान्तिम् = शान्ति को; अधिगच्छति = प्राप्त हो जाता है



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)