गीता 9:12: Difference between revisions

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Revision as of 15:34, 21 March 2010

गीता अध्याय-9 श्लोक-12 / Gita Chapter-9 Verse-12

मोघाशा मोघकर्माणो मोघज्ञाना विचेतस: ।
राक्षसीमासुरीं चैव प्रकृतिं मोहिनीं श्रिता: ।।12।।



वे व्यर्थ आशा, व्यर्थ कर्म और व्यर्थ ज्ञान वाले विक्षिप्त चित्त अज्ञानीजन राक्षसी, असुरी और मोहिनी स्वभाव को ही धारण किये रहते हैं ।।12।।

Those bewildered persons with vain hopes, futile actions and fruitless knowledge have embraced a fiendish, demoniacal and delusive nature. (12)


मोघाशा: = वृथा आशा ; मोघकर्माण: = वृथा कर्म (और) ; मोघज्ञाना: = वृथा ज्ञान वाले ; विचेतस: = अज्ञानीजन ; राक्षसीम् = राक्षसों के ; च = और ; आसुरीम् = असुरों के (जैसे) ; मोहिनीम् = मोहित करने वाले (तामसी) ; प्रकृतिम् = स्वभाव को ; एव = ही ; श्रिता: = धारण किये हुए हैं ;



अध्याय नौ श्लोक संख्या
Verses- Chapter-9

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)