गीता 10:7: Difference between revisions

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जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्य रूप विभूति को और योग शक्ति को तत्व से जानता है, वह निश्चल भक्ति योग से युक्त हो जाता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है ।।7।।
जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्य रूप विभूति को और योग शक्ति को तत्त्व से जानता है, वह निश्चल भक्ति योग से युक्त हो जाता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है ।।7।।


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Revision as of 06:58, 17 January 2011

गीता अध्याय-10 श्लोक-7 / Gita Chapter-10 Verse-7

एतां विभूतिं योगं च मम यो वेत्ति तत्त्वत: ।
सोऽवकिम्पेन योगेन युज्यते नात्र संशय: ।।7।।



जो पुरुष मेरी इस परमैश्वर्य रूप विभूति को और योग शक्ति को तत्त्व से जानता है, वह निश्चल भक्ति योग से युक्त हो जाता है- इसमें कुछ भी संशय नहीं है ।।7।।

He who knows in reality this supreme divine glory and supernatural power of Mine gets established in Me through unfaltering devotion; of this there is not doubt. (7)


य: = जो(पुरुष); एताम् = इस; मम= मेरी; विभूतिम् = परमैश्वर्यरूप विभूति को; च = और योगम् = योगशक्तको; तत्त्वत: = तत्त्वसे; वेत्ति = जानता है; स: = वह(पुरुष); अवकिम्पेन = निश्वल; योगेन = ध्यानयोगद्वारा(मेरे में ही); युज्यते = एकीभावसे स्थित होता है; अत्र = इसमें (कुछ भी); संशय: संशय; (अस्ति) = है



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)