गीता 4:32: Difference between revisions

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एवम् = ऐसे; बहुविधा: = बहुत प्रकार के; यज्ञा: = यज्ञ; ब्राह्मण: = वेद की; मुखे = वाणी में;वितता: = विस्तार किये गये हैं; तान् = उन; सर्वान् = सबको; कर्मजान = शरीर मन और इन्द्रियों की क्रिया द्वारा ही उत्पन्न होने वाले; विद्वि = जान; एवम् = इस प्रकार (तत्व से); ज्ञात्वा = जानकर (निष्काम कर्मयोग द्वारा); विमोक्ष्य से = संसार बन्धन से मुक्त हो जायेगा।
एवम् = ऐसे; बहुविधा: = बहुत प्रकार के; यज्ञा: = यज्ञ; ब्राह्मण: = वेद की; मुखे = वाणी में;वितता: = विस्तार किये गये हैं; तान् = उन; सर्वान् = सबको; कर्मजान = शरीर मन और इन्द्रियों की क्रिया द्वारा ही उत्पन्न होने वाले; विद्वि = जान; एवम् = इस प्रकार (तत्त्व से); ज्ञात्वा = जानकर (निष्काम कर्मयोग द्वारा); विमोक्ष्य से = संसार बन्धन से मुक्त हो जायेगा।
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Revision as of 06:59, 17 January 2011

गीता अध्याय-4 श्लोक-32 / Gita Chapter-4 Verse-32

प्रसंग-


उपर्युक्त प्रकरण में भगवान् ने कई प्रकार के यज्ञों का वर्णन किया और यह बात भी कही कि इनके सिवा और भी बहुत से यज्ञ <balloon link="वेद" title="वेद हिन्दू धर्म के प्राचीन पवित्र ग्रंथों का नाम है, इससे वैदिक संस्कृति प्रचलित हुई । ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤"> वेद</balloon>-शात्रों में बतलाये गये हैं; इसलिये यहाँ यह जिज्ञासा होती है कि उन यज्ञों में से कौन-सा यज्ञ श्रेष्ठ है । इस पर भगवान् कहते है-


एवं बहुविधा यज्ञा वितता ब्रह्राणो मुखे ।
कर्मजान्विद्धि तान्सर्वानेवं ज्ञात्वा विमोक्ष्यसे ।।32।।




इसी प्रकार और भी बहुत तरह के यज्ञ वेद की वाणी में विस्तार से कहे गये हैं । उन सब को तू मन, इन्द्रिय और शरीर की क्रिया द्वारा संपन्न होने वाले जान, इस प्रकार तत्त्व से जानकर उनके अनुष्ठान द्वारा तू कर्म बन्धन से सर्वथा मुक्त हो जायेगा ।।32।।


Many such forms of sacrifice have been set forth in detail through the mouth of the Vedas; know them all as involving the action of mind, senses and body. Thus knowing the truth about them you shall be freed from the bondage of action through their performance. (32)


एवम् = ऐसे; बहुविधा: = बहुत प्रकार के; यज्ञा: = यज्ञ; ब्राह्मण: = वेद की; मुखे = वाणी में;वितता: = विस्तार किये गये हैं; तान् = उन; सर्वान् = सबको; कर्मजान = शरीर मन और इन्द्रियों की क्रिया द्वारा ही उत्पन्न होने वाले; विद्वि = जान; एवम् = इस प्रकार (तत्त्व से); ज्ञात्वा = जानकर (निष्काम कर्मयोग द्वारा); विमोक्ष्य से = संसार बन्धन से मुक्त हो जायेगा।



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)