गीता 10:10: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - "तत्व " to "तत्त्व ")
m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
Line 58: Line 58:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{प्रचार}}
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Revision as of 05:48, 14 June 2011

गीता अध्याय-10 श्लोक-10 / Gita Chapter-10 Verse-10

प्रसंग-


उपर्युक्त प्रकार से भजन करने वाले भक्तों के प्रति भगवान् क्या करते हैं, अगले दो श्लोकों में यह बतलाते हैं-


तेषां सततयुक्तानां भजतां प्रीतिपूर्वकम् ।
ददामि बुद्धियोगं तं येन मामुपयान्ति ते ।।10।।



उन निरन्तर मेरे ध्यान आदि में लगे हुए और प्रेमपूर्वक भजने वाले भक्तों को मैं वह तत्त्व ज्ञान रूप योग देता हूँ, जिससे वे मुझको ही प्राप्त होते हैं ।।10।।

On those ever united through meditation, with Me and worshipping Me with love, I confer that Yoga of wisdom through which they come to Me. (10)


तेषाम् = उन; सततयुक्तानाम् = निरन्तर मेरे ध्यान में लगे हुए (और); प्रीतिपूर्वकम् = प्रेमपूर्वक; भजताम् = भजनेवाले भक्तों को(मैं);तम् = वह; बुद्धियोगम् = तत्तवज्ञानरूप योग; ददामि = देता हूं(कि); येन = जिससे; ते = वे; माम् = मेरे को(ही); उपयान्ति = प्राप्त होते हैं



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)