गीता 7:27: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - " मे " to " में ")
m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
Line 59: Line 59:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{प्रचार}}
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Revision as of 05:51, 14 June 2011

गीता अध्याय-7 श्लोक-27 / Gita Chapter-7 Verse-27

प्रसंग-


'भूतानि' के साथ 'सर्व' शब्द का प्रयोग होने से ऐसा भ्रम हो सकता है कि सभी प्राणी द्वन्द्वमोह से मोहित हो रहे हैं, कोई भी उससे बचा नहीं है, अतएव ऐसे भ्रम की निवृति के लिये भगवान् कहते हैं-


इच्छद्वेषसमुत्थेन द्वन्द्वमोहेन भारत ।
सर्वभूतानि संमोहं सर्गे यान्ति परंतप ।।27।।



हे भरतवंशी <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! संसार में इच्छा और द्वेष से उत्पन्न सुख-दु:खादि द्वन्द्वरूप मोह से सम्पूर्ण प्राणी अत्यन्त अज्ञानता को प्राप्त हो रहे हैं ।।27।।

O valiant Arjuna, through delusion in the shape of pairs of opposites (such as pleasure and pain etc.), born of desire and hatred, all living creatures in this world are falling a prey to infatuation. (27)


भारत = हे भरतवंशी ; परंतप = अर्जुन ; सर्गे = संसार में ; इच्छाद्वेषसमुत्थेन = इच्छा और द्वेष से उत्पन्न हुए ; द्वन्द्वमोहेन = सुखदु:खादि द्वन्द्व रूप मोह से ; सर्वभूतानि = संपूर्ण प्राणी ; संमोहम् = अति अज्ञानता को ; यान्ति = प्राप्त हो रहे हैं ;



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)