गीता 4:2: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - " मे " to " में ")
m (Text replace - "{{गीता2}}" to "{{प्रचार}} {{गीता2}}")
Line 55: Line 55:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{प्रचार}}
{{गीता2}}
{{गीता2}}
</td>
</td>

Revision as of 05:55, 14 June 2011

गीता अध्याय-4 श्लोक-2 / Gita Chapter-4 Verse-2


एवं परम्पराप्राप्तमिमं राजर्षयो विदु: ।
स कालेनेह महता योगो नष्ट: परंतप ।।2।।




हे परन्तप <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर में जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> ! इस प्रकार परम्परा से प्राप्त इस योग को राजर्षियों ने जाना; किंतु उसके बाद वह योग बहुत काल से इस पृथ्वी लोक में लुप्त प्राय हो गया ।।2।।


Arjuna , This supreme science was thus received through the chain of disciplic succession, and the saintly kings understood it in that way. But in course of time the succession was broken, and therefore the science as it is appears to be lost.(2)


एवम् = इस प्रकार; परम्परा प्राप्तम् = परम्परा से प्राप्त हुए; इमम् =इस (योग) को; राजर्षय: =राजर्षियों ने; विदु: = जाना (परन्तु); परंतप = हे अर्जुन; स: = वह; योग: = योग; महता = बहुत; कालेन = काल से; इह = इस (पृथिवी) लोक में; नष्ट: = लोप (प्राय:) हो गया था।



अध्याय चार श्लोक संख्या
Verses- Chapter-4

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)