गीता 7:11: Difference between revisions

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Revision as of 05:56, 14 June 2011

गीता अध्याय-7 श्लोक-11 / Gita Chapter-7 Verse-11

प्रसंग-


इस प्रकार प्रधान-प्रधान वस्तुओं में साररूप से अपनी व्यापकता बतलाते हुए भगवान् ने प्रकारान्तर से समस्त जगत् में अपनी सर्वव्यापकता और सर्वस्वरूपता सिद्ध कर दी, अब अपने को ही त्रिगुणमय जगत् का मूल कारण बतलाकर इस प्रसंग का उपसंहार करते हैं-


बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम् ।
धर्माविरूद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ ।।11।।



हे <balloon title="पार्थ, भारत, धनंजय, पृथापुत्र, परन्तप, गुडाकेश, निष्पाप, भरतश्रेष्ठ, महाबाहो सभी अर्जुन के सम्बोधन है।" style="color:green">भरतश्रेष्ठ</balloon> ! मैं बलवानों का आसक्ति और कामनाओं से रहित बल अर्थात् सामर्थ हूँ और सब भूतों में धर्म के अनुकूल अर्थात शास्त्र के अनुकूल काम हूँ ।।11।।

Arjuna, of the mightly I am the might, free from passion and desire; in beings I am the sexual desire not conflicting with virtue or scriptural injunctions.(11)


भरतर्षभ = हे भरतश्रेष्ठ; अहम् = मैं; बलवताम् = बलवानों का; कामरागविवर्जितम् = आसक्ति औ कामनाओं से रहित; बलम् = बल अर्थात् सामर्थ्य हूं; च = और भूतेषु = सब भूतों में धर्म के अनुकूल अर्थात् शास्त्र के अनुकूल; काम: = काम; अस्मि = हूं



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)