गीता 7:25: Difference between revisions

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Revision as of 05:56, 14 June 2011

गीता अध्याय-7 श्लोक-25 / Gita Chapter-7 Verse-25

प्रसंग-


जब भगवान् इतने प्रेमी और दयासागर हैं कि जिस किसी प्रकार से भी भजने वाले को अपने स्वरूप की प्राप्ति करा ही देते हैं तो फिर सभी लोग उनको क्यों नहीं भजते, इस जिज्ञासा पर कहते हैं-


नाहं प्रकाश: सर्वस्य योगमायासमावृत:।
मूढ़ोऽयं नाभिजानाति लोको मामजमव्ययम् ॥25॥



अपनी योगमाया से छिपा हुआ मैं सबके प्रत्यक्ष नहीं होता, इसलिये यह अज्ञानी जनसमुदाय मुझ जन्मरहित अविनाशी परमेश्वर को नहीं जानता अर्थात् मुझको जन्मने-मरने वाला समझता है ॥25॥

Veiled by My Yogamaya (divine potency); I am not manifest to all. Hence these ignorant folk fail to recognize Me, the unborn and imperishable Supreme Deity (i.e., consider Me as subject to birth and death)


योगमायासमावृत: = अपनी योग माया से छिपा हुआ ; अहम् = मैं ; सर्वस्य = सबके ; प्रकाश: = प्रत्यक्ष ; न = नहीं होता हूं (इसलिये) ; अयम् = यह ; मूढ: = अज्ञानी ; लोक: = मनुष्य ; माम् = मुझ ; अजम् = जन्मरहित ; अव्ययम् = अविनाशी परमात्मा को (तत्त्व से); न = नहीं ; अभिजानाति = जानता हैं



अध्याय सात श्लोक संख्या
Verses- Chapter-7

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29, 30

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)