गीता 18:64: Difference between revisions

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Revision as of 10:41, 21 March 2010

गीता अध्याय-18 श्लोक-64 / Gita Chapter-18 Verse-64

प्रसंग-


सबके हृदय की बात जानने वाले अन्तर्यामी भगवान् स्वयं ही <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> पर दया करके उसे समस्त गीता के उपदेश का सार बतलाने का विचार करके कहने लगे-


सर्वगुह्रातमं भूय: श्रृणु मे परमं वच: ।
इष्टोऽसि मे दृढमिति ततो वक्ष्यामि ते हितम् ।।64।।



सम्पूर्ण गोपनीयों से अति गोपनीय मेरे परम रहस्य युक्त वचन को तू फिर भी सुन तू मेरा अतिशय प्रिय है, इससे यह परम हितकारक वचन मैं तुझसे कहूँगा ।।64।।

Hear, again, My supremely secret word, the most esoteric of all truths. You are extremely dear to Me; therefore, I shall offer you this salutary advice. (64)


सर्वगुह्मतमम् = संपूर्ण गोपनीयों से भी अति गोपनीय ; मे = मेरे ; परमम् = परम ; वच: = बचनको (तूं) ; भूय: = फिर (भी) ; श्रृणु = सुन (क्योंकि तूं) ; मे = मेरा  ; द्य्ढम् = अतिशय ; इष्ट: = प्रिय ; असि = है ; तत: = इससे ; इति = यह ; हितम् = परमहितकारक वचन (मैं) ; ते = तेरे लिये ; वक्ष्यामि = कहूंगा



अध्याय अठारह श्लोक संख्या
Verses- Chapter-18

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36, 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51, 52, 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72 | 73 | 74 | 75 | 76 | 77 | 78

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)