गीता 1:44: Difference between revisions

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Revision as of 10:54, 21 March 2010

गीता अध्याय-1 श्लोक-44 / Gita Chapter-1 Verse-44

प्रसंग-


इस प्रकार स्वजन-वध से होने वाले महान अनर्थ का वर्णन करके अब <balloon link="अर्जुन" title="महाभारत के मुख्य पात्र है। पाण्डु एवं कुन्ती के वह तीसरे पुत्र थे । अर्जुन सबसे अच्छा धनुर्धर था। वो द्रोणाचार्य का शिष्य था। द्रौपदी को स्वयंवर मे जीतने वाला वो ही था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">अर्जुन</balloon> युद्ध के उद्योग, रूप और कृत्य पर शोक प्रकट करते हैं-


उत्सन्नकुलधर्माणां मनुष्याणां जनार्दन ।
नरकेऽनियतं वासो भरतीत्यनुशुश्रुम ।।44।।



हे <balloon title="मधुसूदन, केशव, वासुदेव, माधव, जनार्दन और वार्ष्णेय सभी भगवान् कृष्ण का ही सम्बोधन है ।" style="color:green">जनार्दन</balloon> ! जिनका कुल-धर्म नष्ट हो गया है, ऐसे मनुष्यों का अनिश्चित काल तक नरक में वास होता है, ऐसा हम सुनते आये हैं ।।44।।

Krishna, we hear that men who have lost their family traditions dwell in hell for an indefinite period of time. (44)


उत्सन्नकुलधर्माणाम् = नष्ट हुए कुलधर्म वाले; मनुष्याणाम् = मनुष्यों का; अनियतम् = अनन्त कालतक; नरके = नरक में; वास: = वास; भवति = होता है; अनुशुश्रुम =सुना है



अध्याय एक श्लोक संख्या
Verses- Chapter-1

1 | 2 | 3 | 4, 5, 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17, 18 | 19 | 20, 21 | 22 | 23 | 24, 25 | 26 | 27 | 28, 29 | 30 | 31 | 32 | 33, 34 | 35 | 36 | 37 | 38, 39 | 40 | 41 | 42 | 43 | 44 | 45 | 46 | 47

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)