गीता 2:52: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
m (Text replace - '<td> {{गीता अध्याय}} </td>' to '<td> {{गीता अध्याय}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>')
 
m (1 अवतरण)
(No difference)

Revision as of 10:55, 21 March 2010

गीता अध्याय-2 श्लोक-52 / Gita Chapter-2 Verse-52


यदा ते मोहकलिलं बुद्धिर्व्यतितरिष्यति ।
तदा गन्तासि निर्वेदं श्रोतव्यस्य श्रुतस्य च ।।52।।




जिस काल तेरी बुद्धि मोहरूप दलदल को भलीभाँति पार कर जायेगी, उस समय तू सुने हुए और सुनने में आने वाले इस लोक और परलोक सम्बन्धी सभी भोगों से वैराग्य को प्राप्त हो जायेगा ।।52।।


When your mind will have fully crossed the more of delusion, you will then grow indifferent to the enjoyments of this world and the next that have been heard of as well as to those that are yet to be heard of.(52)


यदा = जिस कालमें ; ते = तेरी ; बुद्धि: = बुद्धि ; तदा = तब ; (त्वम्) = तूं ; श्रोतव्यस्य = सुननेयोग्य ; च = और ; मोहकलिलम् = मोहरूप दलदलको ; व्यतितरिष्यति = बिल्कुल तर जायगी ; श्रुतस्य = सुने हुएके ; निर्वेदम् = वैराग्यको ; गन्तासि = प्राप्त होगा ;



अध्याय दो श्लोक संख्या
Verses- Chapter-2

1 | 2 | 3 | 4 | 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12 | 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42 , 43, 44 | 45 | 46 | 47 | 48 | 49 | 50 | 51 | 52 | 53 | 54 | 55 | 56 | 57 | 58 | 59 | 60 | 61 | 62 | 63 | 64 | 65 | 66 | 67 | 68 | 69 | 70 | 71 | 72

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)