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'''बरगद / राष्‍ट्रीय वृक्ष'''
'''बरगद / राष्‍ट्रीय वृक्ष'''
[[भारत]] में बरगद के वृक्ष को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस वृक्ष को 'वट' के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ है, जो अपने प्ररोहों के लिए विश्वविख्यात है। इसकी जड़ें ज़मीन में क्षैतिज रूप में दूर-दूर तक फैलकर पसर जाती है। इसके पत्तों से [[दूध]] भी निकलता है। यह पेड़ त्रिमूर्ति का प्रतीक है। इसकी छाल में [[विष्णु]], जड़ों में [[ब्रह्मा]] और शाखाओं में [[शिव]] विराजते हैं। [[अग्निपुराण]] के मुताबिक़ बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी [[पूजा]] हैं। इस कारण से बरगद काटा नहीं जाता है। अक़ाल में इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं।
==मान्यता==
अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्‍वर माना जाता है। इसीलिए इस वृक्ष को [[अक्षयवट]] भी कहा जाता है। लोक मान्यता है कि बरगद के एक पेड़ को काटे जाने पर प्रायश्चित के तौर पर एक बकरे की बलि देनी पड़ती है। [[वामनपुराण]] में वनस्पतियों की व्युत्पत्ति को लेकर एक कथा भी आती है। [[आश्विन मास]] में विष्णु की नाभि से जब [[कमल]] प्रकट हुआ, तब अन्य [[देव|देवों]] से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय [[यक्ष|यक्षों]] के राजा 'मणिभद्र' से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ।
<poem>यक्षाणामधिस्यापि मणिभद्रस्य नारद।
वटवृक्ष: समभव तस्मिस्तस्य रति: सदा।।</poem>
==पौराणिक वर्णन==
[[चित्र:Banyan-Tree-Kolkata.jpg|बरगद के वृक्ष, कोलकाता <br />Banyan Tree, Kolkata|thumb|250px]]
यक्ष से निकट सम्बन्ध के कारण ही वट वृक्ष को 'यक्षवास', 'यक्षतरु', 'यक्षवारूक' आदि नामों से भी पुकारा जाता है। हमारे [[पुराण|पुराणों]] में ऐसी अनेक प्रतीकात्मक कथाएँ, प्रकृति, वनस्पति व [[देवता|देवताओं]] को लेकर मिलती हैं। जिस प्रकार अश्वत्थ अर्थात् [[पीपल]] को विष्णु का प्रतीक कहा गया, उसी प्रकार इस जटाधारी वट वृक्ष को साक्षात जटाधारी पशुपति [[शंकर]] का रूप मान लिया गया है। [[स्कन्दपुराण]] में कहा गया है-
<poem>अश्वत्थरूपी विष्णु: स्याद्वरूपी शिवो यत:</poem>
अर्थात् पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं।


'''बरगद''' [[भारत]] का राष्‍ट्रीय वृक्ष (''फाइकस बेंघालेंसिस'') है। बरगद का वृक्ष घना एवं फैला हुआ होता है।
*[[हरिवंश पुराण]] में एक विशाल वृक्ष का वर्णन आता है, जिसका नाम 'भंडीरवट' था और उसकी भव्यता से मुग्ध हो स्वयं भगवान ने उसकी छाया में विश्राम किया।
<poem>न्यग्रोधर्वताग्रामं भाण्डीरंनाम नामत:।
दृष्ट्वा तत्र मतिं चक्रे निवासाय तत: प्रभु:।।</poem>
 
*'सुभद्रवट' नाम से एक और वट वृक्ष का भी वर्णन मिलता है, जिसकी डाली [[गरुड़]] ने तोड़ दी थी। [[रामायण]] के अक्षयवट की कथा तो लोक प्रचलित है ही। परन्तु [[वाल्मीकि रामायण]] में इसे 'श्यामन्यग्रोध' कहा गया है। [[यमुना]] के तट पर वह वट अत्यन्त विशाल था। उसकी छाया इतनी ठण्डी थी कि उसे 'श्यामन्योग्राध' नाम दिया गया। श्याम शब्द कदाचित वृक्ष की विशाल छाया के नीचे के घने अथाह अंधकार की ओर संकेत करता है और गहरे [[रंग]] की पत्रावलि की ओर। रामायण के परावर्ति साहित्य में इसका [[अक्षयवट]] के नाम से उल्लेख मिलता है। [[राम]], [[लक्ष्मण]] और [[सीता]] अपने वन प्रवास के समय जब यमुना पार कर दूसरे तट पर उतरते हैं, तो तट पर स्थित इस विशाल वट वृक्ष को सीता प्रणाम करती हैं।
==महत्त्वपूर्ण तथ्य==
*बरगद [[भारत]] का 'राष्‍ट्रीय वृक्ष' (फाइकस बेंघालेंसिस) है।
*बरगद के वृक्ष की शाखाएँ दूर-दूर तक फैली तथा जड़ें गहरी होती हैं। इतनी गहरी जड़ें किसी और वृक्ष की नहीं होतीं।
*बरगद के वृक्ष की शाखाएँ दूर-दूर तक फैली तथा जड़ें गहरी होती हैं। इतनी गहरी जड़ें किसी और वृक्ष की नहीं होतीं।
*बरगद के वृक्ष की शाखाएँ और जड़ें एक बड़े हिस्‍से में एक नए पेड़ के समान लगने लगती हैं।
[[चित्र:Banyan-Tree-Kolkata.jpg|बरगद के वृक्ष, कोलकाता <br />Banyan Tree, Kolkata|thumb|left|250px]]
*जड़ों और अधिक तने से शाखाएँ बनती हैं और इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्‍वर माना जाता है।  
*जड़ों और अधिक तने से शाखाएँ बनती हैं और इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्‍वर माना जाता है।  
*बरगद का वृक्ष [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] और लोक कथाओं का एक अविभाज्‍य अंग है।
*वट, यानी बरगद को 'अक्षय वट' भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है।
*वट, यानी बरगद को 'अक्षय वट' भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है।
*अब भी बरगद के वृक्ष को ग्रामीण जीवन का केंद्र बिन्‍दु माना जाता है और आज भी गांव की परिषद इसी पेड़ की छाया में पंचायत करती है।
*अब भी बरगद के वृक्ष को ग्रामीण जीवन का केंद्र बिन्‍दु माना जाता है और आज भी गांव की परिषद इसी पेड़ की छाया में पंचायत करती है।
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Revision as of 11:21, 24 November 2011

thumb|250px|बरगद के वृक्ष
Banyan Tree
बरगद / राष्‍ट्रीय वृक्ष भारत में बरगद के वृक्ष को एक महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। इस वृक्ष को 'वट' के नाम से भी जाना जाता है। यह एक सदाबहार पेड़ है, जो अपने प्ररोहों के लिए विश्वविख्यात है। इसकी जड़ें ज़मीन में क्षैतिज रूप में दूर-दूर तक फैलकर पसर जाती है। इसके पत्तों से दूध भी निकलता है। यह पेड़ त्रिमूर्ति का प्रतीक है। इसकी छाल में विष्णु, जड़ों में ब्रह्मा और शाखाओं में शिव विराजते हैं। अग्निपुराण के मुताबिक़ बरगद उत्सर्जन को दर्शाता है। इसीलिए संतान के लिए इच्छित लोग इसकी पूजा हैं। इस कारण से बरगद काटा नहीं जाता है। अक़ाल में इसके पत्ते जानवरों को खिलाए जाते हैं।

मान्यता

अपनी विशेषताओं और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्‍वर माना जाता है। इसीलिए इस वृक्ष को अक्षयवट भी कहा जाता है। लोक मान्यता है कि बरगद के एक पेड़ को काटे जाने पर प्रायश्चित के तौर पर एक बकरे की बलि देनी पड़ती है। वामनपुराण में वनस्पतियों की व्युत्पत्ति को लेकर एक कथा भी आती है। आश्विन मास में विष्णु की नाभि से जब कमल प्रकट हुआ, तब अन्य देवों से भी विभिन्न वृक्ष उत्पन्न हुए। उसी समय यक्षों के राजा 'मणिभद्र' से वट का वृक्ष उत्पन्न हुआ।

यक्षाणामधिस्यापि मणिभद्रस्य नारद।
वटवृक्ष: समभव तस्मिस्तस्य रति: सदा।।

पौराणिक वर्णन

बरगद के वृक्ष, कोलकाता
Banyan Tree, Kolkata|thumb|250px
यक्ष से निकट सम्बन्ध के कारण ही वट वृक्ष को 'यक्षवास', 'यक्षतरु', 'यक्षवारूक' आदि नामों से भी पुकारा जाता है। हमारे पुराणों में ऐसी अनेक प्रतीकात्मक कथाएँ, प्रकृति, वनस्पति व देवताओं को लेकर मिलती हैं। जिस प्रकार अश्वत्थ अर्थात् पीपल को विष्णु का प्रतीक कहा गया, उसी प्रकार इस जटाधारी वट वृक्ष को साक्षात जटाधारी पशुपति शंकर का रूप मान लिया गया है। स्कन्दपुराण में कहा गया है-

अश्वत्थरूपी विष्णु: स्याद्वरूपी शिवो यत:

अर्थात् पीपलरूपी विष्णु व जटारूपी शिव हैं।

  • हरिवंश पुराण में एक विशाल वृक्ष का वर्णन आता है, जिसका नाम 'भंडीरवट' था और उसकी भव्यता से मुग्ध हो स्वयं भगवान ने उसकी छाया में विश्राम किया।

न्यग्रोधर्वताग्रामं भाण्डीरंनाम नामत:।
दृष्ट्वा तत्र मतिं चक्रे निवासाय तत: प्रभु:।।

  • 'सुभद्रवट' नाम से एक और वट वृक्ष का भी वर्णन मिलता है, जिसकी डाली गरुड़ ने तोड़ दी थी। रामायण के अक्षयवट की कथा तो लोक प्रचलित है ही। परन्तु वाल्मीकि रामायण में इसे 'श्यामन्यग्रोध' कहा गया है। यमुना के तट पर वह वट अत्यन्त विशाल था। उसकी छाया इतनी ठण्डी थी कि उसे 'श्यामन्योग्राध' नाम दिया गया। श्याम शब्द कदाचित वृक्ष की विशाल छाया के नीचे के घने अथाह अंधकार की ओर संकेत करता है और गहरे रंग की पत्रावलि की ओर। रामायण के परावर्ति साहित्य में इसका अक्षयवट के नाम से उल्लेख मिलता है। राम, लक्ष्मण और सीता अपने वन प्रवास के समय जब यमुना पार कर दूसरे तट पर उतरते हैं, तो तट पर स्थित इस विशाल वट वृक्ष को सीता प्रणाम करती हैं।

महत्त्वपूर्ण तथ्य

  • बरगद भारत का 'राष्‍ट्रीय वृक्ष' (फाइकस बेंघालेंसिस) है।
  • बरगद के वृक्ष की शाखाएँ दूर-दूर तक फैली तथा जड़ें गहरी होती हैं। इतनी गहरी जड़ें किसी और वृक्ष की नहीं होतीं।
  • जड़ों और अधिक तने से शाखाएँ बनती हैं और इस विशेषता और लंबे जीवन के कारण इस वृक्ष को अनश्‍वर माना जाता है।
  • वट, यानी बरगद को 'अक्षय वट' भी कहा जाता है, क्योंकि यह पेड कभी नष्ट नहीं होता है।
  • अब भी बरगद के वृक्ष को ग्रामीण जीवन का केंद्र बिन्‍दु माना जाता है और आज भी गांव की परिषद इसी पेड़ की छाया में पंचायत करती है।


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