गीता 10:6: Difference between revisions

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
Jump to navigation Jump to search
[unchecked revision][unchecked revision]
No edit summary
m (Text replace - "<td> {{महाभारत}} </td> </tr> <tr> <td> {{गीता2}} </td>" to "<td> {{गीता2}} </td> </tr> <tr> <td> {{महाभारत}} </td>")
Line 52: Line 52:
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{महाभारत}}
{{गीता2}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>
<tr>
<tr>
<td>
<td>
{{गीता2}}
{{महाभारत}}
</td>
</td>
</tr>
</tr>

Revision as of 12:22, 21 March 2010

गीता अध्याय-10 श्लोक-6 / Gita Chapter-10 Verse-6

महर्षय: सप्त पूर्वे चत्वारो मनवस्तथा ।
मद्भावा मानसा जाता येषां लोक इमा: प्रजा: ।।6।।



सात महर्षिजन, चार उनसे भी पूर्व में होने वाले सनकादि तथा <balloon link="स्वयंभुव" title="ये ब्रह्मा के मानस पुत्रों में से थे जिनका विवाह ब्रह्मा के दाहिने भाग से उत्पन्न शतरूपा से हुआ था। ¤¤¤ आगे पढ़ने के लिए लिंक पर ही क्लिक करें ¤¤¤">स्वायंभुव</balloon> आदि चौदह मनु- ये मुझमें भाव वाले सब के सब मेरे संकल्प से उत्पन्न हुए हैं, जिनकी संसार में यह सम्पूर्ण प्रजा है ।।6।।

The seven great seers, their four elders(sanaka and others), and the fourteen manus or progenitors of makind (such as Svayambuva Me, were born of My will; from them all these creatures in the world have descended. (6)


सप्त = सात(तो); महर्षय: = महर्षिजन;(और); चत्वार: = चार(उनसे भी); पूर्वे = पूर्व में होनेवाले (सनकादि); मनव: = स्वयंमु आदि चौदह मनु; (एते) = यह; मभ्दावा: = मेरे में भाववाले (सबके सब); मानसा: जाता: मेरे संकल्प से उत्पत्र हुए हैं(कि); येषाम् = जिनकी; लोके = संसार में; इमा: = यह संपूर्ण; प्रजा: = प्रजा है



अध्याय दस श्लोक संख्या
Verses- Chapter-10

1 | 2 | 3 | 4, 5 | 6 | 7 | 8 | 9 | 10 | 11 | 12, 13 | 14 | 15 | 16 | 17 | 18 | 19 | 20 | 21 | 22 | 23 | 24 | 25 | 26 | 27 | 28 | 29 | 30 | 31 | 32 | 33 | 34 | 35 | 36 | 37 | 38 | 39 | 40 | 41 | 42

अध्याय / Chapter:
एक (1) | दो (2) | तीन (3) | चार (4) | पाँच (5) | छ: (6) | सात (7) | आठ (8) | नौ (9) | दस (10) | ग्यारह (11) | बारह (12) | तेरह (13) | चौदह (14) | पन्द्रह (15) | सोलह (16) | सत्रह (17) | अठारह (18)